शिरहट्टी से इस बार भाजपा के रामप्पा सोबेप्पा लमाणी को करीब २९ हजार वोटों के अंतर से जीत मिली है। उनकी जीत के बाद से ही यह कयास लगाए जाने लगे थे कि क्या राज्य में एक बार फिर उसी दल की सरकार बनेगी जिस दल का विधायक शिरहट्टी से निर्वाचित होता है। संयोग से गुरुवार को जब बीएस येड्डियूरप्पा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तब एक बार फिर इस पर मुहर लग गई कि जिसने शिरहट्टी जीता, उसने कर्नाटक में सरकार बनाई।
शिरहट्टी के साथ चलता आ रहा यह अजीबोगरीब संयोग वर्ष-१९७२ के विधानसभा चुनाव से ही चला आ रहा है। वर्ष-१९७२ और १९७८ में जहां कांग्रेस उम्मीदवार को जीत मिली तो कांग्रेस ने राज्य में सरकार बनाई, वहीं वर्ष-१९८३ में जब निर्दलीय उम्मीदवार को शिरहट्टी से जीत मिली तब उन्होंने उस समय की रामकृष्ण हेगड़े सरकार को अपना समर्थन दे दिया। इसी प्रकार 1985, 1989, 1999, 2004, 2008 और 2013 में भी जिस दल के उम्मीदवार को शिराहट्टी में जीत मिली उसी दल की राज्य में सरकार बनी। वर्ष-२०१८ में भी भाजपा ने रामप्पा सोबेप्पा लमाणी ने जीत हासिल की तो भाजपा के येड्डियूरप्पा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। शिरहट्टी के साथ चला आ रहा यह संयोग अब भाजपा को बहुमत साबित करने में भी रास आता है या नहीं, यह आने वाले दिनों के लिए बेहद अहम रहेगा।
मंत्रियों पर मेहरबान रहा बेंगलूरु
बेंगलूरु. एक ओर कांग्रेस सरकार के मंत्रिमंडल में शामिल रहे आधे उम्मीदववार अपनी सीट बचाने में असफल रहे, वहीं बेंगलूरु शहर से लडऩे वाले सभी छहों को जीत मिली। बेंगलूरु शहर के अलग-अलग क्षेत्रों से केजे जार्ज, रामलिंगा रेड्डी, रोशन बेग, कृष्णा बैरेगौड़ा, एम कृष्णप्पा तथा पूर्व मंत्री दिनेश गुंडूराव विजयी रहे। इनमें से जार्ज को छोडक़र सभी की जीत का अंतर २०१३ के विधानसभा चुनावों की अपेक्षा कम हो गया।