यहां चुनावी तस्वीर बिल्कुल अलग रही। सात बार विधायक रहे रोशन बेग के मैदान में नहीं होने और उनका अपने पक्ष में समर्थन पाने की आस में भाजपा यहां खाता खोलने की उम्मीद लगाए बैठी थी।
जद-एस भी इस क्षेत्र पर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसके प्रत्याशी तनवीर अहमद को करारी हार झेलनी पड़ी। गठबंधन सरकार से नाराज बेग भी भाजपा का साथ देने वालों में शामिल थे, लेकिन भाजपा ने ऐन वक्त पर उन्हें टिकट देने और पार्टी में शामिल करने से मना कर दिया।
इस क्षेत्र में वैसे तो दर्जी से लेकर चाय दुकान चलाने वाले तक कई उम्मीदवार मैदान में थे, लेकिन मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के ही बीच था। कांटे की टक्कर में बाजी रिजवान ने मार ली।
इस क्षेत्र में राजनीतिक समीकरण का भी काफी असर रहा। बाकी क्षेत्रों की अपेक्षा इस क्षेत्र में स्थानीय मुद्दों का भी असर है। पुराने बेंगलूरु के इस प्रमुख क्षेत्र में रसल मार्केट, कमिर्शियल स्ट्रीट और एमजी रोड जैसे इलाके आते हैं, लेकिन एक बड़े हिस्से में आज भी बुनियादी सुविधाओं की स्थिति अच्छी नहीं है।
भाजपा क्षेत्र के तमिल फैक्टर के सहारे नैया पार लगाने का प्रयास कर रही थी तो कांग्रेस और जद-एस परंपरागत मतों के सहारे वर्चस्व बचाए रखने की कोशिश में थे।