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हिंदू विवाह की तरह संस्कार नहीं है मुस्लिम निकाह : कर्नाटक हाईकोर्ट

locationबैंगलोरPublished: Oct 23, 2021 09:04:09 am

Submitted by:

Nikhil Kumar

– निकाह टूटने पर दायित्वों से नहीं बच सकते

हिंदू विवाह की तरह संस्कार नहीं है मुस्लिम निकाह : कर्नाटक हाईकोर्ट

हिंदू विवाह की तरह संस्कार नहीं है मुस्लिम निकाह : कर्नाटक हाईकोर्ट

– दुबारा शादी नहीं करने वाली तलाकशुदा मुस्लिम महिला भी गुजारा भत्ता की हकदार

बेंगलूरु. कर्नाटक उच्च न्यायालय (Karnataka High Court) ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि तलाक (divorce) के बाद मुस्लिम महिला (Muslim Women) के फिर से शादी नहीं करने की स्थिति में इद्दत की अवधि के बाद मेहर देने के बावजूद पूर्व पत्नी के गुजारे की व्यवस्था करना पूर्व पति की जिम्मेदारी है।

न्यायाधीश कृष्णा एस दीक्षित ने कहा कि मुस्लिमों में एक एग्रीमेंट (Agreement) के साथ निकाह होता है। इसके टूटने से उत्पन्न कुछ अधिकारों और दायित्वों से पीछे नहीं हटा जा सकता। तलाक के जरिए विवाह बंधन टूट जाने के बाद भी पक्षकारों की सभी जिम्मेदारियां और कर्तव्य पूरी तरह खत्म नहीं होते हैं। अदालत ने कहा कि कानून के तहत नई जिम्मेदारियां भी पैदा हो सकती हैं। उनमें से एक जिम्मेदारी शख्स का अपनी पूर्व पत्नी को गुजारा भत्ता देने का परिस्थितिजन्य कर्तव्य है जो तलाक की वजह अपना भरण-पोषण करने में सक्षम नहीं हो। अदालत ने कहा कि दुबारा शादी नहीं करने वाली पूर्व पत्नी के गुजारा भत्ता मांगने का हक जीवनयापन की आवश्यकताओं से जुड़ा है, लग्जरी से नहीं।

जस्टिस दीक्षित ने कुरान की आयतों का हवाला देते हुए कहा कि अपनी बेसहारा पूर्व पत्नी को गुजारा-भत्ता देना एक सच्चे मुसलमान (Muslim) का नैतिक और धार्मिक कर्तव्य है। अदालत ने कहा कि एक मुस्लिम पूर्व पत्नी को कुछ शर्तें पूरी करने की स्थिति में गुजारा भत्ता लेने का अधिकार है और यह निर्विवाद है। जस्टिस दीक्षित ने कहा कि इस मामले में मेहर अपर्याप्त रूप से तय किया गया और वधु पक्ष के पास सौदेबाजी की समान शक्ति नहीं होती।

पारिवारिक अदालत के फैसले को दी थी चुनौती
अदालत ने बेंगलूरु के एजाजुर रहमान की पारिवारिक अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए यह आदेश दिया। दंपती ने मार्च 1991 में निकाह किया था और मेहर पांच हजार रुपए तय हुई थी। रहमान ने उसी साल नवम्बर में पत्नी को तलाक दे दिया। रहमान ने मेहर के 5 हजार रुपए के साथ ही इद्दत अवधि में गुजारे के लिए 900 रुपए दिए। वर्ष 2002 में दुबारा शादी नहीं करने वाली तलाकशुदा पत्नी ने गुजारा भत्ता को लेकर पूर्व पति के खिलाफ पारिवारिक अदालत में मामला दायर किया।

पूर्व पति ने अदालत में दलील दी कि तलाक के बाद उसने नया निकाह कर लिया और अब एक बच्चे का पिता भी है। वह गुजारा भत्ता देने की स्थिति में नहीं है। अगस्त 2011 में पारिवारिक अदालत ने आदेश दिया था कि पूर्व पत्नी वाद की तारीख से अपनी मौत या दूसरी शादी होने अथवा पूर्व पति की मौत तक हर महीने 3 हजार रुपए गुजारा भत्ता लेने की हकदार है।

उच्च न्यायालय ने 25 हजार रुपए जुर्माने के साथ याचिका खारिज करते हुए निचली अदालत को तीन महीने में आदेश का अनुपालन कराकर उच्च न्यायालय की रजिस्ट्री को सूचित करने के निर्देश दिए।

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