केएआरडी के अध्यक्ष डॉ. दयानंद सागर ने कहा कि बीते 10 माह में राज्य में चिकित्सकों पर हमले के करीब 12 मामले सामने आए हैं। कर्नाटक सहित देश के कई राज्यों में कोविड वार्ड में काम कर रहे चिकित्सकों के साथ मारपीट हुई हैं। दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं होती है। कई मामले तो रिपोर्ट ही नहीं होते हैं। सरकार दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपी) और भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) के प्रावधानों के तहत केंद्रीय सुरक्षा कानून लाए और सभी सरकारी और निजी अस्पतालों में एक अनिवार्य सुरक्षा संरचना सुनिश्चित करे। चिकित्सकों ने सरकारी अस्पतालों में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं, कोरोना महामारी के कारण प्रभावित शैक्षणिक वर्ष की पाठ्यक्रम शुल्क माफ करने व नियमानुसार पदोन्नति की मांग भी की है। कई छात्रों ने तीन वर्ष तक कनिष्ठ रेजिडेंट के रूप में काम किया। अब इन्हें वरिष्ठ रेजिडेंट के रूप में पदोन्नत किया जाना चाहिए। लेकिन, सरकार ऐसा नहीं कर रही है। यह शोषण है।
उन्होंने कहा कि हमलों के कारण चिकित्सक मानसिक व शारीरिक रूप से परेशान हैं। कई चिकित्सक अवसाद, चिंता, अनींद्रा व घबराहट के दौर से गुजर रहे हैं। कोरोना के कारण दो-तीहाई स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को कोई न कोई मानसिक परेशानी है। किसी भी आपदा के दौरान उपचाराधीन मरीजों की मौत का असर स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं पर पड़ता है। इसमें बड़ी संख्या में पीजी चिकित्सक भी शामिल हैं। समाज के प्रति चिकित्सकों की जिम्मेदारी है तो चिकित्सकों के प्रति समाज के लोगों को भी जिम्मेदार बनना पड़ेगा।
स्वास्थ्य व चिकित्सा शिक्षा मंत्री डॉ. के. सुधाकर के अनुसार कोरोना की दूसरी लहर के दस्तक देने के बाद देश में कुल 646 चिकित्सकों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। इनमें से नौ चिकित्सक कर्नाटक से हैं। हालांकि, कोविड पॉजिटिव एक और युवा चिकित्सक दो दिनों पहले जिंदगी की जंग हार गया।
आइएमए, बेंगलूरु के जनसंपर्क अधिकारी डॉ. श्रीनिवास एस. के अनुसार कोविड से गत वर्ष राज्य में करीब 60 चिकित्सकों को अपनी जान गंवानी पड़ी है।