गुजरात, हिमाचल के बाद दक्षिण के द्वार पर संघर्ष की तैयारी
भाजपा-कांग्रेस का पूरा फोकस अब राज्य परराज्य के चुनावों में नई दिल्ली भी निभाएगी अहम भूमिका
गुजरात, हिमाचल के बाद दक्षिण के द्वार पर संघर्ष की तैयारी
राजीव मिश्रा बेंगलूरु.
गुजरात और हिमाचल विधानसभा चुनावों के बाद अब दोनों प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियां भाजपा और कांग्रेस का फोकस दक्षिण का द्वार कहे जाने वाले कर्नाटक पर है। दक्षिण का यह द्वार फिलहाल दोनों पार्टियों के लिए समान रूप से खुला है। कोई भी पार्टी अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोडऩा चाहती।
चुनावी वर्ष में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने अभी तक कुछ ऐसे मुद्दे उठाए हैं, जिससे सत्ता विरोधी लहर सामने आई है। भ्रष्टाचार और 40 फीसदी कमीशन सरकार के मुद्दे पर जन-प्रतिक्रिया भाजपा को चिंता में डालने वाली है। अभी तक कांग्रेस एजेंडा तय करती और सत्तारूढ़ भाजपा पीछे चलते नजर आई है। लेकिन, भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व का पूरा फोकस अब कर्नाटक पर हो गया है। भाजपा आलाकमान अगले कुछ दिनों में कई बड़े फैसले ले सकती है जिससे, राज्य में पार्टी के चुनावी अभियान को प्रभावी और सरकार के खिलााफ नकारात्मक प्रचार को संतुलित किया जा सके।
कांग्रेस के वार पर पलटवार की योजना
सूत्रों का कहना है कि दिल्ली में आलाकमान स्तर पर लगभग हर रोज कर्नाटक चुनावों को लेकर चर्चा होने लगी है। कांग्रेस के आरोपों और सरकार के खिलाफ चलाए गए अभियानों को लेकर पार्टी चिंतित है। इससे निपटने के लिए केंद्र और राज्य सरकार की उपलब्धियों को लेकर बड़े पैमाने पर चुनावी अभियान चलाने की योजना बनाई गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और गुजरात चुनावों में जीत के साथ बसवराज बोम्मई के नेतृत्व वाली सरकार की उपलब्धियों का तडक़ा लगाया जाएगा। सूत्रों का कहना है कि राज्य सरकार के प्रत्येक विभाग को अपनी-अपनी 15 प्रमुख उपलब्धियों को सूचीबद्ध करने को कहा गया है। इन उपलब्धियों को लेकर एक व्यापक प्रचार अभियान चलाने की तैयारी हो रही है। इसके अलावा संगठन में भी कुछ बड़े बदलाव हो सकते हैं।
निर्णय जो भाजपा चाहकर भी नहीं कर सकी
सूत्रों का कहना है कि पार्टी राज्य में मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष दोनों को बदलना चाहती है। लेकिन, राज्य के दो बहुसंख्यक समुदायों लिंगायत और वोक्कालिगा से मुख्यमंत्री एवं प्रदेश अध्यक्ष चुनने की रणनीति, विकल्पों के अभाव में सफल नहीं हो पा रही है। चुनावी वर्ष में पार्टी कोई जोखिम भी नहीं उठाना चाहती है। मुख्यमंत्री बदलने की चर्चा के दौरान बसवराज बोम्मई की जगह बागेवाड़ी के विधायक अरविंद बेल्लद एक प्रमुख दावेदार के तौर पर उभरे। बेल्लद संघ के जाने-माने नेता चंद्रकांत पाटिल के बेटे और बहुसंख्यक लिंगायत समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। लेकिन, उनकी छवि को लेकर पार्टी आलाकमान आश्वस्त नहीं है। उनपर कुछ आरोप हैं जो चुनावी वर्ष में भारी पड़ सकते हैं। वहीं, प्रदेश अध्यक्ष नलिन कटील के विकल्प के तौर पर पार्टी महासचिव एवं चिक्कमग्गलूरु के विधायक सीटी रवि का नाम आया। लेकिन, सीटी रवि को लेकर भी कुछ मुद्दे हैं जिससे आलाकमान उनके नाम पर सहमत नहीं है। केंद्र में राज्य मंत्री शोभा करंदलाजे का नाम भी प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर आया जो वोक्कालिगा समुदाय से हैं। लेकिन, इससे प्रदेश इकाई में समस्या बढऩे और पार्टी के भीतर विभाजन मुखर होने का खतरा है। शोभा के प्रदेश अध्यक्ष बनने पर पार्टी के भीतर संतुलन भी बिगड़ सकता है। हालांकि, पार्टी महासचिव एवं प्रदेश मामलों के प्रभारी अरुण सिंह ने कहा कि मुख्यमंत्री एवं प्रदेश अध्यक्ष नहीं बदले जाएंगे। लेकिन, दोनों ही पदों पर बदलाव की चर्चा हुई है और पार्टी आलाकमान ऐसा चाहती भी है।
दिल्ली ले सकती है हाथ में कमान
सूत्रों का कहना है कि डैमेज कंट्रोल के तौर पर भाजपा लिंगायत मतदाताओं को खुश करने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येडियूरप्पा के बेटे और प्रदेश भाजपा उपाध्यक्ष बीवाई विजयेंद्र को सामने ला सकती है। उन्हें चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष का महत्वपूर्ण पद दिया जा सकता है। पार्टी राज्य की सत्ता पर काबिज रहने के लिए कोई कसर नहीं छोडऩा नई दिल्ली सूक्ष्म से सूक्ष्म चीजों को अपनेे स्तर पर मैनेज करने की कोशिश करेगी। सीमा विवाद के मुद्दे पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ बैठक में शामिल होने जा रहे मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई को चुनावों के संदर्भ में महत्वपूर्ण निर्देश दिए जाएंगे। अमित शाह बैठक में दोनों मुख्यमंत्रियों से बयानबाजी बंद करने और सीमा-विवाद मसला सुप्रीम कोर्ट में सुलझाने की सलाह दे सकते हैं। लेकिन, चुनाव को लेकर बोम्मई को मिलने वाला संंदेश उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो सकता है।
कांग्रेस में भी इस बार अलग दावंं-पेंच
दूसरी तरफ मल्लिकार्जुन खरगे के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद राज्य विधानसभा का अगला चुनाव कांग्रेस के लिए पिछले चुनावों से अलग होगा। पिछला चुनाव कांग्रेस पूरी तरह सिद्धरामय्या के नेतृत्व में लड़ी थी। राष्ट्रीय नेतृत्व को उतना महत्व नहीं मिला। बैनरों, पोस्टरों में सिद्धरामय्या की तस्वीरें राहुल गांधी की तुलना में बड़ी थीं। कमान सिद्धरामय्या के हाथ थी तो अधिकांश फैसले भी स्थानीय स्तर पर हुए। लेकिन, इस बार दिल्ली का बोलबाला रहेगा। चुनावों में कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व प्रमुख भूमिका निभाएगा। मल्लिकार्जुन खरगे अपने स्तर से चीजों को मैनेज करने की कोशिश करेंगे। प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार के मुख्यमंत्री पद के प्रमुख दावेदार के तौर पर उभरने के बाद पार्टी के भीतर सत्ता के तीन केंद्र बन गए हैं। खरगे के अलावा सिद्धरामय्या और डीके शिवकुमार टिकट बंटवारे में प्रमुख भूमिका निभाएंगे। सूत्रों का कहना है कि लगभग 130 से 140 निवार्चन क्षेत्रों में टिकट बंटवारे को लेकर कोई दिक्कत नहीं है। यह लगभग पहले से तय है कि वहां से कौन उम्मीदवार चुनाव लड़ेगा। लेकिन, लगभग 70 से 80 सीटों को लेकर तीनों प्रमुख नेताओं के बीच खींचतान होगी। इसमें मल्लिकार्जुन खरगे की भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो सकती है। पार्टी पहले ही कह चुकी है कि चुनाव सामूहिक नेतृत्व में होगा और मुख्यमंत्री का फैसला आलाकमान करेगा।
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