हाइ कोर्ट ने कूर्ग वाइल्डलाइफ सोसायटी और अन्य लोगों की तरफ से दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि रेलवे इस योजना पर आगे काम नहीं कर सकता क्योंकि वन एवं वन्यजीव संबंधी मंजूरियां प्राप्त नहीं की गई हैं। अदालत ने मामले का निपटारा करते हुए रेलवे को यह भी निर्देश दिए कि वे इन मंजूरियों के लिए आवेदन करें तो याचिकाकर्ताओं को भी सूचित करें।
दक्षिण पश्चिम रेलवे ने फरवरी में मैसूरु के बेलागोला और कुशालनगर के बीच फरवरी में 87 किमी रेलवे लाइन के निर्माण को मंजूरी दी थी। कुशालनगर कोडग़ू क्षेत्र का सबसे बड़ा शहर है। इससे पर्यावरणविदों और स्थानीय लोगों में भारी बेचैनी पैदा हो गई थी। एक अन्य प्रस्तावित रेल लाइन जिसके लिए जंगलों को काटने की योजना थी, मैसूरु और थलसेरी रेललाइन है।
कूर्ग वाइल्ड लाइफ सोसायटी के अध्यक्ष कर्नल मुथन्ना ने कहा, अब तक वन विभाग कह रहा था कि रेलवे ने उनसे संपर्क ही नहीं किया है। अब जबकि हम इस मामले में पक्षकार हैं, यदि रेलवे परियोजना की समीक्षा करना चाहता है या पर्यावरण मंत्रालय से अनुमति मांगना चाहता है, तो उसे महें भी सूचित करना होगा। उन्होंने कहा, तकनीकी रूप से चूंकि यह टाइगर रिजर्व में एक बफर जोन है, इसलिए उन्हें ये मंजूरी नहीं मिल सकती है।
कूर्ग वाइल्डलाइफ सोसाइटी और अन्य लोगों ने अदालत का दरवाजा खटखटाते हुए कहा था कि अंधाधुंध व्यावसायीकरण और अस्थिर विकास के कारण पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी तंत्र का बड़े पैमाने पर विनाश हुआ है। इसी कारण कोडग़ू क्षेत्र भी पर्यावरणीय आपदाओं के लिए संवेदनशील बन चुका है। पिछले साल आई विनाशकारी बाढ़ इसका प्रमाण है।
उन्होंने कहा कि रेल लाइन का निर्माण होने से न केवल जंगलों का सफाया हो जाएगा बल्कि यह इस इलाके में भौगोलिक बदलाव भी करेगा। इससे व्यावसायिक और पर्यटक गतिविधियां भी बढ़ेंगी। कोडग़ू में रेलवे या अन्य ऐसे ही बड़े आधारभूत ढंाचा निर्माण योजनाओं का जून २०१७ से ही बड़े पैमाने पर विरोध चल रहा है। सेव कोडगू, सेव कॉवेरी नामक संगठन के बैनर तले एक आंदोलन चल रहा है। इससे जुड़े लोगों का भय है कि ऐसी परियोजनाओं के कारण इस क्षेत्र (भागमंडल) से निकलने वाली कावेरी नदी अपना मार्ग बदल लेगी और इसका दक्षिणी क्षेत्र के इस इलाके पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा क्योंकि बहुत बड़ी आबादी इस नदी के पानी पर ही निर्भर है।