इससे पहले उन्होंने राजीव गांधी यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंसेस की ओर से आयोजित एक स्वास्थ्य जागरूकता वाकाथन को हरी झंडी दिखा विधान सौधा से रवाना किया। इस अवसर मिंटो आई अस्पताल ने नेत्रदान को लेकर एक जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया। इस अवसर पर डॉ. सुधाकर ने नेत्रदान के लिए पंजीकरण कराया। अस्पताल की निदेशक डॉ. सुजाता राठौड़ ने उन्हें प्रमाणपत्र प्रदान किया।
डॉ. सुधाकर ने कहा कि बतौर नेत्रदाता अब वे पूर्ण महसूस कर रहे हैं। मृत्यु के बाद हमारी आंखें दूसरों के जीवन में आशा और प्रकाश की किरण ला सकती हैं। इस नेक काम के लिए पंजीकरण करा हर किसी को मानवता का फर्ज निभाना चाहिए। नेत्रदान महादान है। नेत्रदान कर दूसरों की जिंदगी में उजाला ला सकते हैं ।
5000 जोड़ी आंखें समय रहते एकत्रित नहीं हो पातीं
डॉ. सुधाकर ने कहा कि देश में प्रति वर्ष 40 हजार से ज्यादा नेत्र दान होते हैं। इनमें से 30-35 हजार आखें ही समय पर उपलब्ध हो पाती हैं। विभिन्न कारणों से करीब 5000 जोड़ी आंखें समय रहते एकत्रित नहीं हो पाती हैं। दाता के परिजनों को चाहिए कि नजदीकी अस्पताल को मौत की सूचना तुरंत दें।
उन्होंने कहा कि नेत्रदान के इच्छुक लोगों को चाहित कि समय रहते पंजीकरण कराएं। दाता के मरणोपरांत नेत्र बैंक बिना किसी शुल्क के आगे की औपचारिकताएं पूरी करते हैं।