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कर्नाटक की राजनीति : बागियों की बढ़ी धड़कनें, फैसले का इंतजार

तय होगा भविष्य: पूर्व विधायकों के राजनीतिक भविष्य पर स्थिति होगी साफ

बैंगलोरNov 13, 2019 / 12:14 am

Jeevendra Jha

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राजभवन के बाहर अयोग्य ठहराए गए विधायक। फाइल फोटो

बेंगलूरु. अगले महीने विधानसभा की 15 सीटों पर होने उपचुनाव को लेकर राजनीतिक दलों से ज्यादा चिंतित वे बागी विधायक हैं, जिन्हें अयोग्य ठहराए जाने के कारण उपचुनाव हो रहा। अयोग्य ठहराए गए विधायकों की उम्मीदें बुधवार को आने वाले शीर्ष अदालत के फैसले पर टिकी है। फैसले से पहले बागियों की धड़कनें बढ़ गई हैं तो सत्तारुढ़ भाजपा भी चिंतित है। अदालत के फैसले से तय होगा कि अयोग्य घोषित विधायक उपचुनाव लड़ सकेंगे अथवा उन्हें चुनाव लडऩे के लिए वर्ष 2023 तक इंतजार करना पड़ेगा, जब मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल खत्म होगा।
विधायकों ने अयोग्य ठहराने के फैसले को दो बिंदुओं पर अदालत में चुनौती दी थी। इन विधायकों को कहना था कि वे लोग पहले ही इस्तीफा दे चुके थे और अध्यक्ष ने उनका का त्याग पत्र स्वीकार नहीं किया। साथ ही पार्टी की ओर से अयोग्य ठहराने की याचिका दायर किए जाने के बाद उन्हें अपना पक्ष रखने के लिए नियमों के मुताबिक 7 दिन का समय भी नहीं दिया गया। विधायकों की दलील थी कि अध्यक्ष ने इस्तीफे के बजाय पहले अयोग्यता के मसले पर निर्णय किया।
गौरतलब है कि 1 जुलाई को कांग्रेस के दो विधायकों- विजयनगर के विधायक आनंद सिंह व गोकाक के विधायक रमेश जारकीहोली ने इस्तीफा दिया था। जारकीहोली को कांग्रेस पहले ही निलंबित कर चुकी थी। इसके बाद सप्ताह भर में कई विधायकों ने इस्तीफा दे दिया जिसके कारण एच डी कुमारस्वामी सरकार अल्पमत में आ गई थी। विधायकों के इस्तीफे और विश्वासमत प्रस्ताव पर मतदान को लेकर शीर्ष अदालत ने कई बार दिशा-निर्देश दिए और अंतत: कुमारस्वामी सरकार का पतन हो गया। अयोग्य विधायकों को कानूनी लड़ाई के साथ ही सियासी मोर्चे पर भी जूझना पड़ रहा है। पहले इन नेताओं को टिकट देने की वकालत करने वाले मुख्यमंत्री येडियूरप्पा और दूसरे भाजपा नेताओं का रूख भी विवादित ऑडियो क्लिप आने के बाद बदल चुका है। हालांकि, राजनीतिक हलकों में माना जा रहा है कि उपचुनाव लडऩे का मौका मिलने पर भाजपा इन्हें टिकट दे सकती है। सीटों के गणित को देखते हुए भाजपा को भी अदालत के फैसले की प्रतीक्षा कर रही है।

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