वर्ष 1972 के विधानसभा चुनाव में देवराज अर्स के कांग्रेस का नेतृत्व संभाला और उसे भारी सफलता मिली। इस जीत के पश्चात राज्य में कांग्रेस (ओ) कमजोर होती चली गई। वर्ष 1972 के पश्चात देवराज अर्स 8 वर्षों तक राज्य के मुख्यमंत्री बने रहे। वर्ष 1979 में देवराज अर्स की सरकार का भी दलबदलू विधायकों के कारण पतन हो गया था। देवराज अर्स तथा इंदिरा गांधी के बीच मतभेदों के कारण देवराज अर्स के कई समर्थकों ने रातों-रात पाला बदलते हुए गुंडूराव के नेतृत्व में सरकार का गठन किया था। दरअसल, जनता पक्ष से चयनित नेता जेएच पटेल, जीवराज आल्वा समेत 8 विधायकों के समर्थन से देवराज अर्स ने कांग्रेस (अर्स) का गठन किया। लेकिन, गुंडुराव के नेतृत्व में एस बंगारप्पा, धर्मसिंह, वीरप्पा मोइली, बी.शिवण्णा, रेणुका राजेंद्रन, के.वेंकटप्पा, मनोहर तहसीलदार समेत 9 विधायकों ने देवराज अर्स के नेतृत्ववाली कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया। इस दौरान शहर के बोरिंग अस्पताल में चिकित्सा के लिए भर्ती देवराज अर्स के साथ रात को मुलाकात करने वाले एस. बंगारप्पा ने सुबह होते ही देवराज अर्स के बदले गुंडूराव का समर्थन करने का फैसला किया था। एस बंगारप्पा को कांग्रेस (आइ) की प्रदेश इकाई का अध्यक्ष बनाया गया था। अपने समर्थकों के विश्वासघात से हुए सदमें के कारण देवराज अर्स उबर नहीं सके। वर्ष 198 0 के आम चुनाव में देवराज अर्स के नेतृत्ववाली कांग्रेस का सफाया हो गया था। इसके बाद एक ही रात में देवराज अर्स 80 से अधिक विधायकों ने उनका साथ छोड़ दिया और कांग्रेस (आइ) में शामिल हो गए। इस दल बदल के कारण देवराज अर्स की सरकार का पतन हुआ था।
उसके पश्चात आर.गुंडूराव तथा एस. बंगारप्पा के बीच सत्ता का संघर्ष शुरू हो गया। वर्ष 1983 के विधानसभा चुनाव के दौरान एस. बंगारप्पा ने गुंडूराव सरकार के खिलाफ बगावत करते हुए अपने 5 समर्थक विधायकों के साथ कर्नाटक क्रांति रंगा नामक क्षेत्रीय दल के गठन की घोषणा। वर्ष 198 3 के चुनाव में कांग्रेस की हार के कारण पहली बार जनता पार्टी भाजपा तथा कर्नाटक क्रांति रंगा के 24 तथा 20 निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार अस्तित्व में आई। इस सरकार को भी अस्थिर करने के लिए कांग्रेस के नेताओं ने दलबदल को बढ़ावा दिया था।
वर्ष 1988 में मुख्यमंत्री बने एसआर बोम्माई को भी दलबदलू विधायकों की चुनौती का सामना करना पड़ा था। केवल आठ माह में ही 19 विधायकों के दलबदल के कारण बोम्माई सरकार का पतन हुआ था। इस दौरान भी कुछ विधायकों ने तत्कालीन राज्यपाल पी. वेंकटसुब्बय्या के साथ मुलाकात कर बोम्मई सरकार का समर्थन वापस लेने का पत्र सौंपा था। इस समर्थन पत्र के आधार पर राज्यपाल ने बोम्मई सरकार को बर्खास्त कर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया गया था। हालंकि, राज्यपाल के इस आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती दी गई। शीर्ष अदालत में 9 न्यायाधीशों की संयुक्त पीठ ने इस याचिका की 8 वर्षों तक लंबी सुनवाई के पश्चात वर्ष 1996 में फैसला दिया।
उसके पहले वर्ष 1994 में राज्य के मुख्यमंत्री बने एचडी देवगौडा को भी 18 माह के कार्यकाल के दौरान पार्टी के विधायकों की बगावत का सामना करना पड़ा था। बागी विधायकों का नेतृत्व एस. बंगारप्पा ने किया था। उसके पश्चात जब एसएम कृष्णा मुख्यमंत्री बने तब बंगारप्पा के कर्नाटक कांग्रेस तथा भाजपा के कई विधायकों ने दल बदल कर एसएम कृष्णा का समर्थन किया था।
वर्ष 2004 में कांग्रेस के धरमसिंह के नेतृत्व में बनी कांग्रेस-जनता दल की गठबंधन सरकार गिराने में एचडी कुमारस्वामी ने अहम भूमिका निभाई थी। कुमारस्वामी के नेतृत्व में पार्टी के 42 से अधिक विधायकों ने पाला बदलते हुए भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने का फैसला किया था। इस कारण से धर्मसिंह सरकार का पतन हुआ था। भाजपा-जद-एस ने 20-20 के फार्मूले पर सरकार बनाई जिसमें कुमारस्वामी मुख्यमंत्री और येड्डियूरप्पा उपमुख्यमंत्री बने। लेकिन, सत्ता हस्तांतरण को लेकर हुए विवाद के कारण 20 माह बाद यह सरकार भी गिर गई।वर्ष 2008 के चुनाव में 110 क्षेत्रों में जीत हासिल कर सत्ता में आए बीएस येड्डियूरप्पा ने 5 निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार तो बना ली लेकिन इस कार्यकाल के दौरान पार्टी के विधायकों ने सामूहिक त्यागपत्र की दवाब की राजनीति कर येड्डियूरप्पा की राह मुश्किल की थी। भाजपा के पांच वर्ष के कार्यकाल के दौरान राजनीतिक अस्थिरता माहौल बना रहा। इस दौरान बीएस येड्डियूरप्पा, डीवी सदानंद गौडा तथा जगदीश शेट्टर तीन मुख्यमंत्रियों ने सत्ता की संभाली। गुटबाजी के कारण येड्डियूरप्पा सरकार कई बार संकट में फंसी। सरकार को स्थिर करने के लिए येड्डियूरप्पा ने कांग्रेस तथा जनता दल (एस) के कई विधायकों को त्यागपत्र देने के लिए प्रोत्साहित कर इन क्षेत्रों में उपचुनाव में जीत हासिल करने का फैसला किया। यह ऑपरेशन कमल के रूप में मशहूर हुआ।
उसके पश्चात वर्ष 2013 के चुनाव में कांग्रेस ने सिद्धरामय्या के नेतृत्व में सफलता हासिल की। वर्ष 2018 के चुनाव में किसी भी सरकार को स्पष्ट जनादेश नहीं मिलने कारण भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए कांग्रेस तथा जनता दल (एस) ने गठबंधन सरकार बनाने का फैसला किया। यह सरकार भी कांग्रेस तथा जनता दल (एस) के विधायकों की बगावत से अस्थिरता का सामना कर रही है।