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अल्पसंख्यक शोध छात्रों की फैलोशिप राशि 66 फीसदी घटी

locationबैंगलोरPublished: Nov 23, 2020 09:01:28 pm

Submitted by:

Nikhil Kumar

– 250 से ज्यादा विद्यार्थी प्रभावित- सरकार से निर्णय बदलने की अपील

PHD- Released of Number of seats and names of guides

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बेंगलूरु. अल्पसंख्यक निदेशालय (डीएमओ) ने पीएचडी और एमफील कर रहे अल्पसंख्यक छात्रों की फैलोशिप राशि में 66 फीसदी कटौती की है। जिसके बाद छात्रों को प्रतिमाह दी जाने वाली राशि 25,000 रुपए से घटकर 8,333 रुपए रह गई है। इससे 250 से ज्यादा विद्यार्थी प्रभावित होंगे।

इतना ही नहीं, डीएमओ ने और एक आदेश पारित किया है, जिसमें छात्रों को तीन साल के भीतर अपनी पीएचडी समाप्त करने में विफल रहने पर 12 फीसदी ब्याज के साथ अपनी फैलोशिप राशि नौटाने के लिए कहा गया है।

डीएमओ के अनुसार कोरोना महामारी के कारण घटे राजस्व के कारण यह निर्णय लेना पड़ा। इस फैसले से प्रभावित छात्रों ने अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री श्रीमंत पाटिल और अन्य संबंधित नेताओं के साथ बैठक की मांग की है।

अनुसंधान विद्वानों के एक समूह ने राज्य के विभिन्न नेताओं को इस निर्णय को उलटने के लिए लिखा है। पूर्व मंत्री और विधायक यू.टी खादर को संबोधित पत्रों में छात्रों ने कहा कि महामारी से सभी प्रभावित हुए हैं। सभी को आर्थिक संकट से जूझना पड़ रहा है। साथ ही विद्यार्थी समुदाय भी असहाय है। पाठ्यक्रम शुल्क, आवास शुल्क और अनुसंधान से संबंधित अन्य खर्चों को बोझ विद्यार्थियों पर भी है। डीएमओ के फैलोशिप नियमों के अनुसार विद्यार्थियों को पूर्णकालिक पीएचडी के तहत दाखिला दिया गया है और इस कार्यकाल के दौरान कोई पूर्णकालिक नौकरी नहीं कर सकता है।

निर्धारित समय में पीएचडी समाप्त करना मुश्किल
छात्रों ने आगे कहा कि पीएचडी में न्यूनतम तीन से चार वर्ष लगते हैं। कोरोना महामारी के कारण निर्धारित वर्षों में पीएचडी समाप्त करना और मुश्किल हो गया है। विश्वविद्यालय तीन वर्ष के पहले पीएचडी शोधलेख जमा नहीं लेते हैं। शोधलेख जमा होने के बाद राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ इसकी समीक्षा करते हैं। सभी चरणों के पूरा होने के बाद अंमित प्रस्तुति आती है जिसमें न्यूनतम छह से 10 महीने लगते हैं।

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