रेस्पिरेटरी सिंक्राइटियल वायरस और इन्फ्लुएंजा ब्रोंकियोलाइटिस का सबसे आम कारण है। यह आमतौर पर मौसमी होता है और सर्दियों में बढ़ जाता है। दो महीने से दो साल के बीच के शिशुओं में वायरस के कारण छाती में संक्रमण हो जाता है। बच्चे तेजी से सांस लेने नगते हैं और वायरल निमोनिया के शिकार हो जाते हैं।
नियमित सर्दी और खांसी से अलग देखने की जरूरत
बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सुप्रजा चंद्रशेखर ने बताया कि पीडि़त बच्चों को गैर-इनवेसिव वेंटिलेशन या हाई फ्लो नेशन कैनूला (एचएफएनसी) की आवश्यकता होती है। ब्रोंकियोलाइटिस को नियमित सर्दी और खांसी से अलग देखने की जरूरत है। एक या उससे कम उम्र के बच्चे अगर प्रति मिनट 60 बार से अधिक, पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चे अगर प्रति मिनट 40 बार से अधिक और पांच वर्ष से ज्यादा उम्र के बच्चे अगर प्रति मिनट अगर 30 बार से अधिक सांस ले रहे हों तो चिकित्सकीय परामर्श की आवश्यकता है। यदि बुखार तीन दिन से अधिक हो, बच्चा तरल पदार्थ नहीं पी रहा हो या दिन में दो बार से अधिक उल्टी कर रहा हो तो ये भी चेतावनी के संकेत हैं। चिकित्सकीय सलाह के बिना बच्चों को खुद से नेबुलाइजेशन नहीं दें।
पिछले वर्षों की तुलना में कहीं अधिक
नारायण हेल्थ के पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. अनिल कुमार एस. ने बताया कि गंभीर ब्रोंकियोलाइटिस के कारण आधी रात में भी बाल मरीजों को अस्पताल में भर्ती करने के मामले बढ़े हैं। इस साल मामले पिछले वर्षों की तुलना में कहीं अधिक हैं। समय से पहले पैदा हुए बच्चों को ब्रोंकियोलाइटिस और अन्य गंभीर बीमारियों का खतरा अधिक रहता है।
नियमित टीकों से दूरी भी कारण
पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. श्रीकांत जे.टी. ने बताया कि ब्रोंकियोलाइटिस के मामलों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। महामारी के कारण कई अभिभावकों ने अपने बच्चों को समय पर नियमित टीके नहीं लगवाए हैं। इसके कारण भी बच्चों में फ्लू व श्वसन संक्रमण के मामले बढ़े हैं।
कर्नाटक इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस में निमोनिया के लक्षण वाले 200 से ज्यादा बच्चों को भर्ती किया जा चुका है। सात मरीजों को बचाया नहीं जा सका। इनमें से कुछ के नमूनों में रेस्पिरेटरी सिंक्राइटियल वायरस की पुष्टि हुई थी।