मुख्य न्यायाधीश अभय श्रीनिवास ओक और न्यायाधीश हेमंत चंदनगौदर की खंडपीठ ने निर्देश जारी करते हुए महसूस किया कि बीबीएमपी ठोस कचरे के वैज्ञानिक निपटान पर कानूनों का पालन करने में समक्ष नहीं हो रहा है क्योंकि पालिका हर दिन उत्पन्न कचरे पर उचित डेटा देने में असमर्थ है। साथ ही आने वाले वर्षों में नई इमारतों के कचरे के उत्पादन में वृद्धि का अनुमान लगाने में भी पालिका असमर्थ है।
पीठ शहर की कचरा समस्या के बारे में शिकायत करने वाली जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान अपने पहले के एक आदेश में संकेत दे दिया था कि अगर बीबीएमपी कानून के अनुसार कचरे के प्रसंस्करण के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे को विकसित करने में असमर्थ रहता है न्यायालय शहर में नए भवनों के निर्माण की अनुमति देने पर रोक का आदेश दे सकता है। पीठ ने सरकार को कहा कि क्या उसने ठोस अपशिष्ट नीति (एसडब्ल्यू) नियम, 2016 के अनुसार पूरे राज्य के लिए ठोस अपशिष्ट नीति और रणनीति तैयार की है और बीबीएमपी से पूछा कि क्या उसने राज्य नीति के तहत अपशिष्ट प्रबंधन की योजना तैयार की है।
जनहित याचिका पर अगली सुनवाई ३ मार्च को होगी। हालांकि इस दौरान पीठ ने स्पष्ट किया कि इसके आदेशों का अर्थ यह नहीं लगाया जाना चाहिए कि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से प्राधिकरण के बिना बीबीएमपी द्वारा लैंडफिल पर कचरे की डंपिंग की प्रक्रिया को अदालत द्वारा अनुमति दी जाती है।