उपनिषदों के आरंभ में यही कहा गया है कि स्वयं को जानो। आत्मा के ज्ञान के सिवाय कोई अन्य मार्ग नहीं है, यदि किसी अन्य मार्ग में जाओगे तो ऐसे गहरे अंधकार में घिर जाओगे कि वापसी का रास्ता नहीं सूझेगा, लेकिन इसके विपरित जैसे ही आत्मा ज्ञान होता है अंधेरा दूर भाग जाता है।
दुखों का अंत तत्काल हो जाता है। दुखों के अंत से तात्पर्य शारीरिक दुखों के अंत से नहीं है। शारीरिक दुख तो सभी को आते हैं, लेकिन मानसिक क्लेश दूसरा होता है। अगर आनंदित जीवन जीना चाहते हैं तो हमें सबसे पहले अपने आप को जानना होगा। हम कौन हैं कहां से आए हैं और हमारा वास्तविक ध्येय क्या है।
हमारा वास्तविक ध्येय है आत्म कल्याण। जब हमारी आकाक्षाएं बढ़ती जाती हैं, तब हम सुखी नहीं रह सकते। अगर हमें इनके पार जाना है तो इन्हें नियंत्रित करें या इन इच्छाओं का दमन करें।
जिस इंसान ने स्वयं को जान लिया है वह न किसी से राग रखता है और न द्वेष। जीवन कंा सार इसी में है कि स्वयं को जानो। आत्मा को आत्मा से जानो। मंत्री सम्पतराज बाफना ने सभी का आभार जताया।