जनरल रावत के लिए गनिकोप्पा में उमड़ी अपार भीड़ और उनको सुनने के लिए बच्चों से लेकर बुजुर्गों और महिलाओं की उत्सुकता इस बात का प्रमाण था कि कोडवा समुदाय अपनी सेना और देश के लिए कितना समर्पित है।
कावेरी कॉलेज परिसर में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जनरल रावत ने कहा कि कोडुगू ‘योद्धाओं की भूमि’ है। जनरल रावत ने कहा कि उन्हें फील्ड मार्शल करियप्पा और जनरल के. एस. तिमय्या की स्मृति में बनाए गए स्मारकों के अनावरण का अवसर प्राप्त होने पर गर्व है। जनरल रावत ने कहा कि कोडुगू के रहने वाले लोग थलसेना में बड़ी संख्या में अधिकारियों और जवानों के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि भविष्य में कई और सेना प्रमुखों का उदय इस महान भूमि से होगा।
थलसेना अध्यक्ष ने इस बात भी जोर किया कि पूर्व सैनिकों को बेहतर चिकित्साएं उपलब्ध कराना प्राथमिकता है और पूर्व सैनिक अंशदान स्वास्थ्य योजना के तहत दवाओं की उपलब्धता को आसान बनाने के लिए कई तरह के बदलाव भी किए हैं।
इस मौके पर दक्षिण क्षेत्र के जनरल अफसर कमाडिंग लेफ्टिनेंट जनरल आर के आनंद, कर्नाटक-केरल उपक्षेत्र के जनरल अफसर कमाडिंग मेजर जनरल के एस निज्जर के अलावा थलसेना के अधिकारी और पूर्व सैनिक उपस्थित थे। लेफ्टिनेंट जनरल(सेनि) सी एन सोमण्णा ने थलसेना प्रमुख का स्वागत किया। इस मौके पर दी फील्ड मार्शल करियप्पा जनरल तिमय्या’ (एफएमसीजीटी) फोरम के अध्यक्ष कर्नल (सेनि) के. सी. सुबैया और संयोजक मेजर (सेनि) बी ए नंजप्पा ने कार्यक्रम में विचार व्यक्त किए।
कौन हैं फील्ड मार्शल करियप्पा : पहले भारतीय थलसेना प्रमुख
२८ फरवरी १८९९ को को कोडुगू (पहले कुर्ग) में जन्मे करियप्पा को १५ जनवरी १९४९ को भारतीय सेना का कमांडर इन चीफ नियुक्त किया गया था। वे इस पद पर आसीन होने वाले पहले भारतीय थे और उसके बाद से ही इस दिन को थलसेना दिवस के तौर पर मनाया जाता है।
तीन दशकों की सेवा के बाद वर्ष 1953 में वे भारतीय सेना से सेवानिवृत्त हो गए। बाद में सरकार ने उन्हें आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में उच्चायुक्त नियुक्त किया, जहां उन्होंने १९५६ तक अपनी सेवाएं दी। १९४२ में करियप्पा पहले भारतीय थे जिन्हें सेना की किसी यूनिट का प्रमुख बनाया गया था। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापानियों के खिलाफ बर्मा के अभियान में अपनी भूमिका के लिए करियप्पा को प्रतिष्ठित ‘ऑर्डर ऑफ ब्रिटिश एम्पायर’ (ओबीई) से सम्मानित किया गया था। साल 1947 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी उन्होंने पश्चिमी मोर्चे पर भारतीय बलों की अगुवाई की थी।
१९८६ में उन्हें भारतीय थलसेना के सर्वोच्च सम्मान फील्ड मार्शल के पांच सितारा रैंक से नवाजा गया था। करियप्पा भारतीय सेना के उन दो अधिकारियों में से एक हैं जिन्हें यह सम्मान मिला। उनके अलावा सिर्फ सैम मानेक शॉ को ही फील्ड मार्शल पद से नवाजा गया था। हालांकि, करियप्पा मानेक शॉ से काफी वरिष्ठ थे लेकिन उन्हें बाद में फील्ड मार्शल की पदवी मिली। फील्ड मार्शल करियप्पा का निधन ९४ वर्ष की आयु में मई १९९३ में बेंगलूरु मेंं हुआ था।