scriptकेआरपेट विधानसभा क्षेत्र : यहाँ पहली बार मुकाबले में भाजपा | KRPet : BJP is in competition for the first time | Patrika News

केआरपेट विधानसभा क्षेत्र : यहाँ पहली बार मुकाबले में भाजपा

locationबैंगलोरPublished: Dec 04, 2019 06:17:08 pm

Submitted by:

Priyadarshan Sharma

नारायण गौड़ा को उम्मीदवार बनाकर भाजपा ने यहां की परंपरागत जद-एस और कांग्रेस के बीच होने वाले मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में सफलता पाई है

केआरपेट विधानसभा क्षेत्र : यहाँ पहली बार मुकाबले में भाजपा

KRPet Mandya Karnataka

बेंगलूरु. मुख्यमंत्री बीएस येडियूरप्पा के पैतृक तालुक केआर पेट में पहली बार भाजपा मजबूत दावेदारी के साथ उपचुनाव में उतरी है। चीनी का कटोरा कहे जाने वाले मण्ड्या जिले की इस सीट पर उपचुनाव में नारायण गौड़ा को उम्मीदवार बनाकर भाजपा ने यहां की परंपरागत जद-एस और कांग्रेस के बीच होने वाले मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में सफलता पाई है लेकिन, चुनाव में कमल खिलने के लिए काफी कठिन चुनौती है।
मंड्या को जद-एस का सबसे मजबूत गढ़ माना जाता रहा है। वोक्कलिगा बहुल केआर पेट में जद-एस के टिकट पर कई ऐसे चेहरों ने सफलता पाई जिनका कोई मजबूत जनाधार नहीं था। देवगौड़ा और कुमारस्वामी भी इस बात को जानते हैं, इसलिए लोकसभा चुनाव में कुमारस्वामी के बेटे निखिल मंड्या से जद-एस उम्मीदवार थे। हालांकि निखिल को मिली करारी हार ने तब सारे समीकरण ध्वस्त कर दिए थे और अब भाजपा को ऐसे ही किसी चमत्कार की उम्मीद है।
इसलिए जद-एस के बीएल देवराज और कांग्रेस के केबी चंद्रशेखर को मजबूत चुनौती देते नारायण गौड़ा भी उम्मीद कर रहे हैं कि इस बार केआर पेट में कमल खिलाकर वे येडियूरप्पा को उनके पैतृक तालुक में जीत दिलाएंगे। वहीं कांग्रेस और जद-एस का मानना है कि सीधी लड़ाई में वही हैं। दोनों पार्टियों का दावा है कि जब केआरपेट में भाजपा को आज तक जमीनी कार्यकर्ता नहीं मिले और चुनावों में दस हजार वोट लाना भी मुश्किल रहा तब मुकाबला त्रिकोणीय कैसे हो सकता है।
इतिहास भी कुछ ऐसा ही है। यह एक ज्ञात तथ्य है कि जद-एस और कांग्रेस इस क्षेत्र के पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी हैं। पिछले चुनाव के मतदान प्रतिशत के अनुसार, भाजपा का इस क्षेत्र में कोई मजबूत आधार नहीं है। 2004 के चुनाव में भाजपा उम्मीदवार को सबसे अधिक 29 हजार वोट आया था लेकिन वे तीसरे नंबर पर थे। वहीं, 2008 के चुनावों में भाजपा को 27,131 वोट मिले जबकि 2013 में सबसे कम 2,519 वोट पड़े थे। भाजपा ने यहां कुल छह चुनावों का सामना किया जिसमें तीन बार पार्टी उम्मीदवारों को 10 हजार से कम वोट मिले। १९९४ में पार्टी दूसरे स्थान पर रही लेकिन 1999 और 2004 में चौथे स्थान पर और 2013 में पांचवें स्थान पर फिसल गया। 2018 में पार्टी तीसरे स्थान पर रही। लेकिन, कुल 2,05,554 मतों में भाजपा सिर्फ 9,8 19 वोट ला पाई।
ऐसे में किसी नारायण गौड़ा के लिए राह फिलहाल आसान नहीं है। वे दो बार विधायक रह चुके हैं और इस बार येडियूरप्पा खुद को यहां का पैतृक निवासी बता रहे हैं तो संभव है भाजपा के पक्ष में कुछ उम्मीद जगे। हालांकि यह आसाान नहीं है। मतदाताओं का एक बड़ा यह सवाल कर रहा है कि जब हमने नारायण गौड़ा को जिताकर भेजा और कुमारस्वामी का दावा है कि वे मंड्या के लिए बेहतर काम कर रहे थे तब सिर्फ मंत्री बनने के लिए नारायण गौड़ा ने क्यों जद-एस छोड़ा? वहीं दस वर्ष तक वे विधायक रहे, ऐसे में उनके खिलाफ सत्ता विरोधी लहर भी कई जगहों पर देखी जा सकती है। दो बार विधायक रह चुके और पांचवीं बार चुनाव लड़ रहे कांग्रेस के केबी चंद्रशेखर भी इसी कारण उत्साहित हैं। हालंाकि उनके चुनाव प्रचार में भी फिलहाल सिर्फ नारायण गौड़ा ही निशाना है जबकि केआपेट में लंबित सिंचाई परियोजनाएं, ठप औद्योगिक विकास, पलायन, ग्रामीण क्षेत्रों में अपर्याप्त विकास जैसे कई मुद्दे हैं। यही हाल जद-एस के बीएल देवराज का भी है। वे फिलहाल पार्टी को नारायण गौड़ा द्वारा धोखा देने की बात उठाकर सहानुभूति लेते दिख सकते हैं और पार्टी का मजबूत जनाधार उनकी जीत का भरोसा है।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो