आध्यात्मिक आनंद जगाने की कला सीखें: मुनि सुधाकर
- तमिलनाडु की ओर होगा विहार

मैसूरु. मुनि सुधाकर ने मैसूर में प्रवचन में कहा कि जीवन में प्रवृत्ति और निवृत्ति का संतुलन जरूरी है। खाने के साथ नहीं खाने का अभ्यास भी जरूरी है। खाद्य संयम के विविध प्रकार हैं। अपनी शक्ति के अनुसार उनका अनुसरण करना चाहिए। जैन धर्म की साधना में अनोदरी तप का बहुत महत्व बताया है। उसका तात्पर्य है भूख से कम खाना, अपने पेट को हल्का रखना ,इसी प्रकार बोलने के साथ प्रतिदिन थोड़ा मौन व्रत भी करना चाहिए।
आज हर मनुष्य का मस्तिष्क विचारों से बहुत भारी हो रहा है इसे नाना प्रकार के रोग और तनाव बढ़ रहे हैं। ध्यान और स्वाध्याय से मस्तिष्क की मशीन को हमें विश्राम देना चाहिए। प्रेक्षा ध्यान के योगिक प्रयोगों से हम मानसिक रोग और तनाव से छुटकारा पा सकते हैं। जो लोग प्रवृत्ति के साथ निवृत्ति का अभ्यास नहीं करते उनका जीवन नाना प्रकार की समस्याओं से ग्रसित हो जाता है ।
मुनि ने कहा कि हमें आध्यात्मिक और सहज आनंद की अनुभूति जगाने की कला सीखनी चाहिए, इसके बिना धार्मिक साधना और तपस्या भी भार बन जाती है। आनंद ही जीवन है यह आध्यात्मिक जीवन दर्शन का प्रमुख सूत्र है।
तमिलनाडु की ओर विहार करने का निर्देश
आचार्य महाश्रमण ने मुनि सुधाकर को मर्यादा महोत्सव के अवसर पर तमिलनाडु की ओर विहार करने का निर्देश दिया। इस अवसर पर हनुमंतनगर बेंगलूरु के श्रावक समाज ने मुनि के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की।
तेरापंथ सभा के अध्यक्ष सुभाष बोहरा, उपाध्यक्ष शंकरलाल बोहरा, उपाध्यक्ष बाबुलाल कटारिया, मंत्री हरकचंद ओस्तवाल, कोषाध्यक्ष नाथूलाल बोल्या, सह मंत्री अमरचंद मांडोत, युवक परिषद परामर्शक गौतम दक, अध्यक्ष पवन बोथरा, मंत्री धर्मेश कोठारी, आशीष धारीवाल, राकेश खटेड, रोहित देरसरिया की उपस्थिति रही।
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