scriptआसमानी आतिशबाजी से जगमग हो उठेगा आकाश | leonid meter shower | Patrika News

आसमानी आतिशबाजी से जगमग हो उठेगा आकाश

locationबैंगलोरPublished: Nov 15, 2019 06:01:52 pm

Submitted by:

Rajeev Mishra

लियोनिड उल्कावृष्टि 17/18 नवम्बर की रात, प्रति घंटे 15 उल्काएं चमक बिखेरती आ सकती हैं नजर

आसमानी आतिशबाजी से जगमग हो उठेगा आकाश

आसमानी आतिशबाजी से जगमग हो उठेगा आकाश

बेंगलूरु. आगामी 17/18 नवम्बर की रात आसमानी आतिशबाजी से चमक उठेगी। धरती से सबसे शानदार नजर आने वाली लियोनिड उल्कावृष्टि इस रात चरम पर पहुंच जाएगी। भारतीय ताराभौतिकी संस्थान के प्रोफेसर (सेनि) रमेश कपूर ने बताया कि इन दिनों पृथ्वी एक उल्का नदी से होकर गुजर रही है। इसके उल्का आकाश में सिंह तारासमूह से आते प्रतीत होते हैं। हर साल यह उल्कावृष्टि 14 से 21 नवम्बर के बीच होती है और 17-18 नवम्बर की रात्रि को इसमें सबसे अधिक सक्रियता देखी जाती है। पिछले कई वर्षों की ही तरह इस बार भी इस उल्कावृष्टि की तेजी उम्मीद से कम है। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि इस बार प्रति घंटा में 10 से 15 उल्काएं देखी जा सकेंगी। सिंह तारा समूह इन दिनों मध्य रात्रि में पूर्व में उदय होता है। चूंकि, पिछली 12 नवम्बर को पूर्णिमा थी 17-18 नवम्बर की रात चंद्रमा कर्क तारा समूह के पास पहुंचा होगा। इससे अगला तारा समूह सिंह है। इसलिए चंद्रमा के सामने चमक में लियोनिड उल्काएं फीकी जरूर हो सकती हैं किंतु कुल मिलाकर मंजर निराशाजनक नहीं होगा। सूर्योदय से कुछ घंटे पूर्व अनेक चमकीली उल्काओं की आशा की जा सकती है। बस आसमान साफ होना चाहिए।
40 से 70 किमी प्रति सेकेंड की रफ्तार

उन्होंने बताया कि अंतरिक्ष पूरा शून्य नहीं, इसमें व्याप्त उच्च ऊर्जा के कणों के साथ-साथ कुछ ज्यादा बड़े कण और छोटे-छोटे पिंड भी हैं जिन्हें उल्का कहते हैं। पृथ्वी के आकर्षण के वशीभूत अनेकानेक उल्कापिंड इसकी ओर खींचे चले आते हैं। इनमें लाखों छोटे-छोटे कण सरीखे उल्का पृथ्वी के वातावरण से गुजरते हुए रगड़ खाकर बेहद गर्म हो जाते हैं और जलकर नष्ट हो जाते हैं। ये वास्तव में पथरीले महीने कण हैं इनका भार 0.1 मिलीग्राम से लेकर 100 ग्राम तक हो सकता है। इन्हीं को हम आकाश में टूटते तारे के रूप में देखते हैं। इसमें एक लंबी चमकदार रेखा बनाता उल्का आकाश में एक कोने से दूसरी ओर तीव्र गति से भड़ककर नष्ट हो जाता है। इनका वेग 40 से 70 किलोमीटर प्रति सेकेंड हो सकता है और अधिकांशतम 80 से 90 किमी की ऊंचाई पर ही जलकर नष्ट हो जाते हैं।
धूमकेतु हैं उल्कावृष्टि के जनक

उल्का आसमान में कभी भी दिखाई दे सकते हैं। किंतु वर्ष में कुछ खास मौकों पर काफी बढ़ी संख्या में दिखाई देते हैं। ये उल्कावृष्टि का रूप ले लेता है। आकाश के जिस क्षेत्र विशेष से ये वृष्टि होती प्रतीत होती प्रतीत होती है उसी दिशा के तारासमूह के नाम पर इन्हें नाम दिया जाता है। उल्कावृष्टियों के जनक धूमकेतु हैं। अपने पथ में ये सूर्य का परिभ्रमण कर के आगे निकल जाते हैं। सूर्य की गर्मी के कारण इनका पदार्थ इनके पथ में पीछे छूटता जाता है। पृथ्वी जब इस पथ से होकर गुजरती है तो उल्कावृष्टि का अवसर बन जाता है। इस उल्कावृष्टि लियोनिड का जनक है धूमकेतु 55 पी/टेंपल-टटल जो सूर्य का एक चक्कर 33.27 वर्ष में लगाता है।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो