scriptकन्नड़ को रोजी-रोटी की भाषा बनाएं : वेंकटेशमूर्ति | lets have emotional attachment with our mother tounge | Patrika News

कन्नड़ को रोजी-रोटी की भाषा बनाएं : वेंकटेशमूर्ति

locationबैंगलोरPublished: Dec 05, 2019 08:31:38 pm

Submitted by:

Sanjay Kulkarni

कलबुर्गी में फरवरी में होने वाले 85वें अखिल भारतीय कन्नड़ साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष साहित्यकार डॉ. एचएस वेंकटेशमूर्ति ने कहा कि जब तक हम कन्नड़ को रोजी-रोटी की भाषा नहीं बनाएंगे, तब तक अभिभावक तथा विद्यार्थियों में अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा के प्रति आकर्षण बरकरार रहेगा। जब तक कन्नड़ समेत क्षेत्रीय भाषाएं रोजी-रोटी नहीं दिलाएंगी तब तक ऐसी भाषाओं रक्षा की बातें करना कोरी बकवास साबि

कन्नड़ को रोजी-रोटी की भाषा बनाएं : वेंकटेशमूर्ति

कन्नड़ को रोजी-रोटी की भाषा बनाएं : वेंकटेशमूर्ति,कन्नड़ को रोजी-रोटी की भाषा बनाएं : वेंकटेशमूर्ति

बेंगलूरु. कलबुर्गी में फरवरी में होने वाले 85वें अखिल भारतीय कन्नड़ साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष साहित्यकार डॉ. एचएस वेंकटेशमूर्ति ने कहा कि जब तक हम कन्नड़ को रोजी-रोटी की भाषा नहीं बनाएंगे, तब तक अभिभावक तथा विद्यार्थियों में अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा के प्रति आकर्षण बरकरार रहेगा।
बच्चे हमारी संस्कृति तथा परंपराओं से जुड़े रहें, इसके लिए अंग्रेजी की तरह कन्नड़ को भी रोजी-रोटी की भाषा बनाना होगा। जब तक कन्नड़ समेत क्षेत्रीय भाषाएं रोजी-रोटी नहीं दिलाएंगी तब तक ऐसी भाषाओं रक्षा की बातें करना कोरी बकवास साबित होंगी।
यहां गुरुवार को उन्होंने कहा कि अखिल भारतीय कन्नड़ साहित्य सम्मेलन का अध्यक्ष पद पर चयन उनके लिए सम्मान की बात है। इससे वे सौभाग्यशाली महसूस कर रहे हैं। हर सम्मेलन के दौरान इस पद के लिए कई सक्षम साहित्यकारों के नाम पर चिंतन-मंथन होता है। इनमें से किसी एक को यह दायित्व निभाने का अवसर मिलता है। साहित्य सम्मेलन के दौरान अध्यक्ष का भाषण महत्वपूर्ण दस्तावेज होता है, जो कन्नड़ साहित्य, परंपरा तथा मौजूदा चुनौतियों पर केंद्रित होता है। कलबुर्गी के साहित्य सम्मेलन में वे इस भाषण के माध्यम से केवल उपदेश देने के बदले कन्नड़-भाषी के साथ इस मौजूदा स्थिति को लेकर संवाद करेंगे।
प्रशासनिक प्रयासों से भाषा की रक्षा असंभव
वेंकटेशमूर्ति ने कहा कि केवल प्रशासनिक प्रयासों से किसी भाषा का संरक्षण संभव नहीं है। भाषा, संस्कृति तथा परंपराओं की रक्षा के लिए इनके साथ हमारी भावनात्मक आत्मीयता होनी चाहिए। शहरों के साथ अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों की संख्या बढ़ रही है। इसके लिए मौजूदा व्यवस्था जिम्मेदार है। लोगों को लगता है कि अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा उनके बच्चों के लिए रोजगार दिला सकती है। इससे लोगों में अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों के प्रति आकर्षण बढ़ता जा रहा है।
साहित्य सम्मेलन कन्नड़-भाषी का सशक्त मंच
एक सवाल पर उन्होंने कहा कि कन्नड़ साहित्य सम्मेलनों में पारित प्रस्ताव महज एक रस्म अदायगी बन रही है। कन्नड़ साहित्य सम्मेलन राज्य के कन्नड़ भाषी लोगों का एक सशक्त मंच है। इस मंच से पारित प्रस्ताव किसी भी हालत में दस्तावेजों में सिमटकर नहीं रहने चाहिए। इन प्रस्तावों को प्रशासन गंभीरता से ले, ऐसे हालात निर्मित करने होंगे।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो