संस्कारों के बिना जीवन का महत्व नहीं : आचार्य देवेंद्रसागर
- पंचकल्याणक पूजन का आयोजन

बेंगलूरु. राजाजीनगर के शंखेश्वर पाश्र्वनाथ जैन संघ में आचार्य देवेंद्रसागरसूरी एवं मुनि महापद्मसागर की निश्रा में पंचकल्याणक पूजन का आयोजन हुआ। आचार्य ने कहा कि वर्तमान में व्यक्ति स्वार्थी होता जा रहा है। संस्कारों का अभाव इसकी बड़ी वजह है। ऐसे में हमें युवाओं के बीच यह संदेश प्रेषित करना होगा कि संस्कारों के समावेश के बिना हमारे जीवन का कोई महत्व नहीं है। इसके बिना हम आगे नहीं बढ़ सकते। संस्कार ही हैं, जो हमें अच्छे और बुरे की समझ सिखाते हैं।
जीवन की वास्तविकता का आभास
इसी के जरिए हमें अपने सामाजिक कर्तव्यों का बोध होता है। जीवन की वास्तविकता का आभास होता है। हम दूसरे की पीड़ा को महसूस कर सकते हैं और उसे दूर करने के प्रयास कर सकते हैं। इन संस्कारों में प्रमुख है सेवाभाव।
अभावग्रस्त, दुखी, पीडि़त, थकित, व्यथित जीवात्माओं को अपने संसाधन से सहायता व सहयोग द्वारा मुदित व हर्षित करना है। इस करुणा के सद्गुण को आचरण में लाना ही सेवा कहलाता है। मानव का कर्तव्य है कि वह सेवा भाव से निर्लिप्त और निस्वार्थ होकर अपने तन, मन बुद्धि के अतिरिक्त स्वअर्जित संपत्ति को सब की सेवा में समर्पित करें।
अंत में मुनि महापद्मसागर ने कहा कि अपने कर्तव्य को प्रेम, सेवा व विनम्रता से निर्वाह करें। निष्काम सेवा परमात्मा की आराधना व पूजा है।
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