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सहयोग विहीन जीवन पतवार रहित नौका समान -देवेंद्रसागर सूरी

locationबैंगलोरPublished: May 29, 2020 04:23:42 pm

Submitted by:

Yogesh Sharma

राजाजीनगर में धर्मसभा

सहयोग विहीन जीवन पतवार रहित नौका समान -देवेंद्रसागर सूरी

सहयोग विहीन जीवन पतवार रहित नौका समान -देवेंद्रसागर सूरी

बेंंगलूरु. राजाजीनगर जैन संघ में विराजित आचार्य देवेंद्रसागर ने कहा कि सडक़ किनारे खड़ा एक पेड़ जब टूटता है तो सीधा धरती पर गिरता है, क्योंकि वह अकेला होता है। उसे संभालने वाला कोई नहीं होता। जब बांस के जंगल में एक बांस टूट कर गिरने को होता है तो आसपास के बांस के पेड़ उसे संभाल लेते हैं। इसी तरह सारी दुनिया को न सही हम अपने आस पड़ोस के लोगों को, अपने संपर्क में आने वाले व्यक्तियों को उनके कठिन समय में सहारा देकर गिरने से बचा लें तो फिर कोई नहीं गिरेगा और हमें भी कोई गिरने नहीं देगा।
उन्होंने कहा कि प्रत्येक प्राणी जन्म, पोषण और सुरक्षा के लिए किसी न किसी रूप में दूसरे के सहयोग पर निर्भर है। जैसे हमें भी दूसरों का सहयोग अपेक्षित है उसी तरह दूसरे लोगों को भी हमारे सहारे की जरूरत रहती है। संसार में कोई भी इतना गरीब नहीं है जो दूसरों को सहयोग न दे सके और न ही कोई इतना अमीर है जिसे कभी दूसरे की सहायता की जरूरत ना पड़े। पारस्परिक आदर-सत्कार, हार्दिक शुभकामना, संवेदना, स्नेहिल-सहानुभूति, मंगल-आशीर्वाद, शुभकामनाएं एवं उचित परामर्श- ये सब भी एक-दूसरे के प्रति मूक सहयोग के अंग हैं। आपसी सहयोग ही एक ऐसा सेतू हैं जो मानव को मानव से जोड़े रखता है। जीवन केवल सांसों की रथयात्रा नहीं है जो उम्र के पड़ाव-दर-पड़ाव पार करते हुए गुजर जाए। जीवन लेने के लिए ही नहीं अपितु देने के लिए भी बना है। इसलिए सही मायने में जिंदगी वह है जो औरों के काम आए। सहयोग विहीन जीवन पतवार रहित नौका के समान है। जब हम प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दूसरों से बहुत कुछ ले रहे हैं तो हमारा भी कर्तव्य बन जाता है कि हम उन्हें प्रतिपल कुछ न कुछ देने के लिए कटिबद्ध रहें। आचार्यने अंत में कहा कि काल के प्रभाव ने हमारी सोच को इतना संकीर्ण बना दिया है कि हम एकाकी होते जा रहे हैं। व्यक्तिगत हित के लिए दूसरों का अहित करने में किंचित संकोच नहीं करते। सहयोग का आधार लेकर समाज का यह संगठनात्मक ढांचा न खड़ा हुआ होता तो मनुष्य पशुवत होता, क्योंकि अकेला व्यक्ति सभी कार्यों को कभी नहीं कर सकता। आपसी संघर्ष पशुता की निशानी है। एक दूसरे के प्रति सद्भावना रखना, परस्पर सहयोग करना मनुष्य में निहित ऐसा देवत्व है जो सुखद जीवन शैली का रहस्य है। सच तो यह है कि समाज का विकास भी एक-दूसरे के प्रति सहयोग की इस भावना से ही हुआ है। अन्यथा जीवन मत्स्य-न्याय की तरह हो जाता। जहां हर बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है।

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