बेंगलूरु. गणेश बाग में विराजित उपाध्याय रवीन्द्र मुनि ने धर्मसभा में कहा कि अनुकम्पा मनुष्य जन्म की सबसे सार्थक भावदशा है, जिसे पाकर मनुष्यता धन्य होती है। तन धारी जीवों में मनुष्य ही सर्वश्रेष्ठ है पर अगर उसमें प्रेम, करुणा नहीं, तो कोई सार नहीं है।
उन्होंने कहा कि समाज से मनुष्य अस्तित्व सार, जीवन, व्यवस्था और सुविधा पाता है इसलिए उसका सामाजिक होना सहज है। बावजूद इसके समाज में रहकर भी जिनमें करुणा का भाव नहीं है, भय से जिन्हें भय नहीं है, कठोरता जिनका जीवन धन है ऐसे लोग मानव चोले में राक्षस कहलाने के योग्य हैं। मानव का शरीर होना महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि मन और हृदय का मानव होना महत्वपूर्ण है।
मुनि ने कहा कि नरक के बारे में सुना जाता है कि नरक में वे लोग एक दूसरे को दुख देते हैं और इसी से दुखी रहते हैं। अगर हम यहां धरती पर भी प्रेम करुणा का मार्ग छोड़कर एक दूजे को दुख देकर या दुख में देखकर प्रसन्न होते हैं तो हमारे और उन अंधेरे नरकों में रहने वाले नारकियों में फर्क क्या है? अत: मानव जीवन की सार्थकता को पूर्णता देने वाली भगवती अनुकम्पा की शरण में जाना ही सही है।
वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ चिकपेट शाखा के महामंत्री गौतम चंद धारीवाल ने बताया कि श्रमण संघीय सलाहकार रमणिक मुनि, ऋषभ मुनि व अर्हम मुनि ने गुरुवार को चातुर्मास स्थल गोड़वाड भवन का अवलोकन किया। इस अवसर पर चिकपेट शाखा के संरक्षक विजयराज लूणिया, कार्याध्यक्ष प्रकाश चंद बम्ब, प्रकाश चंद ओस्तवाल, मनोहर बाफना, पवन धारीवाल, विनोद गुलेच्छा, अनिल ओस्तवाल, गोड़वाड भवन के महावीरचंद आदि उपस्थित थे।