जो आत्महित को चाहता है उसे संयमी कहते हैं, कड़वाहट जागती है तब क्रोध आता है। देवताओं और दानवों के शब्दकोश अलग-अलग होते हैं। प्रेम को देवता तथा क्रोध को दानव कहा गया है। रिश्ते भी प्रेम से मजबूत होते हैं, क्रोध से कमजोर होते हैं। प्रेम से निर्माण होता है और क्रोध से विध्वंस होता है।
रविंद्र मुनि ने मांगलिक प्रदान करते हुए ऋषभ मुनि के मासखमण के तहत 30वें उपवास तपस्या की अनुमोदना की। उनकी तपस्या के पारणे व जीवदया की बोलियां भी लगाई गई। ऋषि मुनि ने गीतिका सुनाई। चिकपेट शाखा के महामंत्री गौतमचंद धारीवाल ने बताया कि चौमुखी जाप के लाभार्थी मनोहर मंजू बाफना का रविंद्र मुनि ने जैन दुपट्टा ओढ़ाकर सम्मान किया।
कार्याध्यक्ष प्रकाश चंद बम्ब ने बताया कि सभा में मुख्य संयोजक रणजीतमल कानंूगा, रमेश सिसोदिया, दानमल सिंघवी, धनराज रुणवाल, किशोर मूथा, आनंद कोठारी सहित विभिन्न उपनगरों एवं चेन्नई, कोटा, रोहिणी दिल्ली, इंदरगढ़, सवाई माधोपुर, जयपुर, बूंदी आदि के श्रद्धालु मौजूद रहे।
समता भाव लाकर बनें सच्चे श्रावक
बेंगलूरु. चामराजपेट में साध्वी वीना ने कहा कि बहुत जन्मों के बाद ये मनुष्य जन्म मिला। मनष्य जन्म तो मिल गया उसमें भी हमें सच्चा श्रावक बनना है और श्रावक को अपने अंदर समता भाव लाने हैं। साध्वी अर्पिता ने कहा कि घमंड या अहंकार करने को मान कहते हैं। किसी वस्तु धन सम्मान व कीर्ति की प्राप्ति होने पर मन में जो अहंकार का भाव आता है वही मान है। सम्मान और अभिनंदन चाहना मान के प्रहार है, जिसमें मान आ जाता है उसके अंदर करुणा भाव और प्रेम खत्म हो जाता है। उसका एक दिन अंत हो जाता है। रविवार को आचार्य आनंद ऋषि व केवल मुनि जयंती मनाई जाएगी।