जो प्रिय होता है वह अच्छा लगता है
बैंगलोरPublished: Dec 06, 2019 06:58:44 pm
हलसूर जैन स्थानक में धर्मसभा
जो प्रिय होता है वह अच्छा लगता है
बेंगलूरु. हलसूर जैन स्थानक में विराजित साध्वी प्रतिभाश्री ने कहा कि आदमी प्रियता की ओर आकृष्ट होता है। प्रिय अच्छा लगता है। आंखों को रूप देखना अच्छा लगता है। कान को प्रिय शब्द सुनना अच्छा लगता है। रसना को प्रिय चीज खाना अच्छा लगता है। पांचों इंद्रियों को प्रियता अच्छी लगती है। जो प्रिय होता है वह अच्छा लगता है। यह प्रियता का चिंतन तो है हित का चिंतन नहीं है। आदमी को बुराई अच्छी लगती है। वह बुराई में ले जाने वाला प्रियता का चिंतन करता है। हित का चिंतन नहीं करता। आज का युग परिवर्तन का युग है, आदतों को भी बदला जा सकता है। इस बड़ी आदत को छोड़ा जा सकता है और कई आदतों का प्रत्यारोपण किया जा सकता है। कोई हितैषी मिल जाए हित की साधना हित को महत्व देने वाला मिल जाए, वह हमारा सच्चा हितैषी होता है। हमारा हित चाहने वाला हमारे अंदर बुराइयों को नहीं देख सकता है। हम भी हितेषी बनें। हमारे हितेषी वह होते हैं जो हमारे हित के बारे में हमें बुराइयों से बचाना चाहते हैं। होते हैं माता-पिता, गुरु जो कि हमारे हित के बारे में सोचते हैं, वह हमारे हितेषी होते हैं। साध्वी दीक्षिताश्री ने कहा कि इस संसार में सबसे बड़ा बंधन है। कर्म बंधन में आनंद के क्षणों में कहां है पर उद्वेग दिनों का महीनों का वर्षों का और जन्म जन्मों का भी हो सकता है। क्योंकि हर बंधन में एक करोड़ क्रंदन छिपा होता है। जिसके हित की कामना करने वाला हितों मित्र होता है, संकट में काम आने वाला ही सच्चा मित्र होता है। राजा जल अग्नि और जोगी इन चारों की उलटी रीत है। संघ के अध्यक्ष किशनलाल कोठारी ने आभार व्यक्त किया, संचालन अभय कुमार बांठिया ने किया।