क्षमा को आत्म स्वभाव बनाएं: आचार्य रत्नसेन सूरीश्वर
- राजाजीनगर में प्रवचन

बेंगलूरु. जैनाचार्य विजय रत्नसेनसूरीश्वर आदि संत सदाशिव नगर से विहार कर राजाजीनगर पहुंचेे। दूसरे तीर्थंकर अजितनाथ भगवान के दीक्षा कल्याणक निमित्त शंखेश्वर पाश्र्वनाथ जैन मंदिर ट्रस्ट के सलोत भवन राजाजीनगर में भक्ति संगीत मय श्रमण गुण स्तवन कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
प्रवचन में आचार्य ने कहा कि परमात्मा अनंत गुणों के स्वामी हैं और हमारी आत्मा में गुणों का अंश भी नहीं है। दोषों से मुक्त होने के लिए एवं प्रभु के गुणों को पाने के लिए हमें प्रतिदिन परमात्मा के गुणों की स्तवना करनी चाहिए। प्रभु ने जो पाया है उसे पाने की प्रार्थना एवं प्रभु ने जो त्याग किया ऐसे नश्वर सांसारिक सुखों के त्याग की भावना अपने अंतर्मन में जागृत हो, ऐसी विनती करनी चाहिए।
क्षमा आदि सद्गुणों को आत्मसात् कर प्रभु की आत्मा ने सर्व कर्मो का क्षय किया। क्षमा आदि सद्गुणों को हमें अपना आत्म स्वभाव रूप बनाना है।
प्रभु के सद्गुणों का अंश भी प्राप्त हो तो हमारी आत्मा का भी अवश्य कल्याण हो सकता है। उन्हें पाने उनके गुणों की स्तवना और प्रार्थना करनी चाहिए।
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