मनुष्य के जीवन का संघर्ष यह है कि वह दो विपरीत भावनाओं, स्वप्न और भय के बीच झूल रहा है। स्वप्न उसे उड़ने के लिए पंख देता है और भय उन पंखों को ही कतर देता है, जिनसे वह उड़ान भर सके। हर व्यक्ति को जीवन में किसी न किसी समय ऐसा प्रतीत हुआ होगा कि वह स्वप्नों को तिलांजलि देकर नियति से समझौता कर ले। इस दृष्टिकोण को भाग्यवादी कहा गया है, और ऐसा सोचने वालों के जीवन में भय महत्वपूर्ण भूमिका में उपस्थित रहता है।
स्वप्न और भय दोनों का उद्देश्य जीवन है। मन और मर्कट (वानर), दोनों एक जैसे होते हैं। तन जब खाली बैठा होता है, उस समय मन में अनेक विचार, धारणाएं, मुख्य रूप से नकारात्मक भाव हावी होने लगते हैं यह आपको चिंता की दलदल में धकेल देता है। चिंता के इस समुद्र से बाहर खींचने वाली शक्ति स्वप्न है, जो आशा का ही दूसरा नाम है।
इससे पूर्व वासुपूज्य स्वामी जैन संघ, ऊटी के पदाधिकारी आचार्य के दर्शनार्थ उपस्थित हुए। ज्ञात हो कि आचार्य का आगामी चातुर्मास उटी जैन संघ में ही होगा।