वोक्कालिगा बहुल इस लोकसभा क्षेत्र में अपना आधार नहीं होने के बावजूद भाजपा के वोट शेयर में काफी वृद्धि हुई और अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने में कामयाब रही। भाजपा उम्मीदवार डॉ. सिद्दरामय्या को 2 लाख 44 हजार 377 वोट मिले जो मंड्या में भाजपा को मिला अब तक का सर्वाधिक मत है। वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी बी. शिवलिंगय्या को कुल पड़े वोट 11 लाख 92 हजार 638 में से महज 86 हजार 993 मिले थे।
इस लोकसभा क्षेत्र में भाजपा सिर्फ एक ही बार 1 लाख वोटों का आंकड़ा पार कर पाई और वह भी वर्ष 2009 में जब एलआर शिवरामेगौड़ा भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़े थे। इस लोकसभा क्षेत्र में उपचुनाव की नौबत इसलिए आई क्योंकि जद-एस सांसद और अब मंड्या जिले के प्रभारी मंत्री सीएस पुट्टराजू ने विधानसभा चुनाव लडऩे के लिए यहां से इस्तीफा दिया था।
जहां उपचुनाव में गठबंधन उम्मीदवार एलआर शिवरामेगौड़ा ने 5 लाख 69 हजार 302 मत पाए, वहीं उनके निकटतम प्र्रतिद्वंद्वी भाजपा के डॉ. सिद्धरामय्या उनसे 3 लाख 24 हजार 925 मतों से दूर रहे। यहां से 7 निर्दलीय उम्मीदवार भी चुनाव लड़ रहे थे। नेलमंगला विधानसभा क्षेत्र से बतौर निर्दलीय उम्मीदवार लगातार दो बार चुनाव जीतने वाले शिवरामेगौड़ा ने एक पूरा राजनीतिक चक्र पूरा किया है।
वे कुछ समय कांग्रेस में रहे, फिर भाजपा में शामिल हुए और अब जद-एस की टिकट पर मंड्या से चुनाव जीतकर सांसद बने। जब वे भाजपा की टिकट से पिछली बार 2009 में मंड्या से ही चुनाव लड़े थे, तब अपने बलबूते 1 लाख 44 हजार 875 वोट हासिल किए थे।
वह भाजपा का मंड्या में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। पिछले विधानसभा चुनावों से पहले वे फिर से जनता दल-एस में लौट आए। वहीं पूर्व नौकरशाह डॉ. सिद्धरामय्या भी भाजपा में शामिल नया चेहरा हैं, जो पहले अतिरिक्त वाणिज्यि कर आयुक्त रह चुके हैं।
हालांकि, सिद्धरामय्या का पैतृक घर मंड्या जिले में ही है और वे पूर्व विधायक बी. दोड्डेबोरेगौड़ा के बेटे हैं फिर भी वे बेंगलूरु निवासी हैं। दोड्डेबोरेगौड़ा श्रीरंगपट्टण से 1967 में निर्दलीय और मंड्या से 1983 में जनता पार्टी की टिकट पर विधानसभा चुनाव जीते थे।
मंड्या लोकसभा उपचुनाव में एक चीज जो स्पष्ट देखने को मिली वह थी गठबंधन दलों के बीच आपसी कलह। लोकसभा की तीन और विधानसभा की दो सीटों (कुल पांच) पर गठबंधन प्रत्याशी थे, लेकिन कार्यकर्ताओं के बीच आपसी मतभेद जिस तरह मंड्या में मुखर रहा वैसा कहीं और नहीं था।
कार्यकर्ता ही नहीं नेता भी गठबंधन के खिलाफ सार्वजनिक मंचों पर बोलते रहे। यहां तक की प्रचार के दौरान जद-एस सुप्रीमो एचडी देवेगौड़ा सार्वजनिक मंच से पार्टी के नाम पर वोट मांगते नजर आए, वहीं कांग्रेस के जिला प्रभारी मंत्री केजे जॉर्ज यहां से लगभग गायब रहे।
दरअसल, ओल्ड मैसूरु क्षेत्र में कांग्रेस-जद-एस पारंपरिक प्र्रतिद्वंद्वी रहे हैं और मंड्या लोकसभा क्षेत्र में प्र्रतिद्वंद्विता काफी तीव्र है। वर्ष 2013 के उपचुनावों में कांग्रेस की टिकट पर कन्नड़ फिल्म अभिनेत्री रम्या चुनाव लड़ी और जद-एस प्रत्याशी सीएस पुट्टराजू के साथ कांटे की टक्कर में विजयी रहीं।
जहां रम्या को 4 लाख 84 हजार 85 मत मिले वहीं पुट्टराजू को 4 लाख 16 हजार 474 मत मिले थे। लेकिन, वर्ष 2014 के आम चुनावों में फिर एक बार जब दोनों आमने-सामने आए तो पुट्टराजू को 5 लाख 24 हजार 370 वोट मिले, जबकि रम्या को 5 लाख 18 हजार 852 वोट मिले।
रम्या 6 हजार से भी कम मतों के अंतर से हार गईं। पारंपरिक रूप से जहां दोनों दलों के बीच आपसी मुकाबला लगभग बराबरी का रहा है वहीं भाजपा इस लोकसभा क्षेत्र में कहीं नहीं टिकती।
हालांकि, दो दशक पहले अधिवक्ता-पत्रकार के. गंगाधर मूर्ति की हत्या मामले में आरोपित शिवरामेगौड़ा का एचडी देवेगौड़ा ने तीव्र विरोध किया था, लेकिन जब वे इस मामलेे से बरी हो गए तब पार्टी ने उन्हें फिर से स्वीकार कर लिया।
भले ही दिग्गज वोक्कालिगा नेता एसएम कृष्णा को भी भाजपा ने पार्टी में शामिल किया, लेकिन मंड्या में अपनी जमीन मजबूत करने में उसे अभी तक सफलता नहीं मिली है। लेकिन, इस बार दो पारंपरिक प्रतिद्वंद्वियों के एक हो जाने से जड़ें जमाने की कोशिश कर रही भाजपा को 2 लाख से ऊपर मत हासिल करने में सफलता मिली है।