मंत्र साधना से जीवन में निखार आता है-मुनि सुधाकर
बैंगलोरPublished: Oct 21, 2020 09:36:48 am
नवान्हिक आध्यात्मिक अनुष्ठान
मंत्र साधना से जीवन में निखार आता है-मुनि सुधाकर
बेंगलूरु. आचार्य महाश्रमण के शिष्य मुनि सुधाकर ने हनुमंतनगर स्थित तेरापंथ भवन में नवान्हिक आध्यात्मिक अनुष्ठान के अंतर्गत चतुर्थ दिन धर्म चर्चा करते हुए कहा मंत्र साधना से जीवन में निखार आता है। मंत्रों के प्रयोग और विधि से किए गए अनुष्ठान से जीवन में अद्भुत ऊर्जा व शक्ति का संचार होता है वह बड़े से बड़े अनिष्ट का निवारण भी हो सकता है। मंत्र साधना में नियमितता व सजगता अनिवार्य है।
मुनि सुधाकर ने कब करें जप विषय पर चर्चा करते हुए कहा नियमित रूप से प्रतिदिन जप कभी भी किया जा सकता है। कोई प्रतिबंध नहीं है परंतु विशेष लाभ के लिए किए गए अनुष्ठान का समय सूर्योदय सूर्यास्त मध्यम दिन और मध्यम रात्रि का समय सर्वश्रेष्ठ रहता है। परंतु साधक को जप का समय नियमित रखने से एकाग्रता का अच्छा विकास होता है। एक समय एक जप का नियम मंत्र की शक्ति को बढ़ा देता है। मंत्र अनुष्ठान में स्थान के महत्व को रेखांकित करते हुए मुनि ने कहा महामंत्र की सिद्धि के लिए यथासंभव एक निश्चित स्थान रखना चाहिए। वह स्थान शुद्ध पवित्र व स्वच्छ होना चाहिए। एकांत स्थान का विशेष महत्व होता है। जप साधना में आसन के महत्व को व्यक्त करते हुए मुनि ने कहा साधना के लिए साधक को खाली जमीन पर बिना कुछ बिछाए कभी नहीं बैठना चाहिए। भूमि के स्पर्श से वह ऊर्जा भूमि में चली जाती है। इससे शरीर में शिथिलता निस्तेजता आ सकती है। इसीलिए जब साधना के समय भूमि और शरीर के बीच सीधा संपर्क नहीं होना चाहिए। बीच में कोई आवरण होना चाहिए चाहे वह लकड़ी का पट हो सफेद रंग का सूती या ऊनी का प्रयोग करना चाहिए। मुनि ने आसन का दूसरा अर्थ व्यत करते हुए कहा जब के समय पद्मासन अर्ध पद्मासन वज्रासन सिद्धासन सुखासन आदि आसनों में कोई भी सुविधाजनक आसन का चुनाव किया जा सकता है। मंत्र अनुष्ठान के समय बार-बार आसन नहीं बदलना चाहिए शरीर को स्थिर वह गर्दन और कमर को सीधी रखना चाहिए। मुनि ने दिशा के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा जप करते समय मुख को पूर्व उत्तर या ईशान दिशा की ओर रखना चाहिए। पूरब दिशा तेजस्विता और ज्ञान का प्रतीक है। उत्तर दिशा उच्चता दृढ़ता का प्रतीक है ईशान दिशा में वर्तमान तीर्थंकर सीमंधर स्वामी विराजमान है। मंत्र के अनुसार भी दिशा का चयन किया जा सकता है। नमस्कार महामंत्र का जप खड़े-खड़े करना भी अधिक लाभकारी हो सकता है।