scriptबेंगलूरु-मैसूरु एक्सप्रेस वे की राह में आ रहे कई अवरोध | Many obstacles coming in the way of Bangalore-Mysuruu expressway | Patrika News

बेंगलूरु-मैसूरु एक्सप्रेस वे की राह में आ रहे कई अवरोध

locationबैंगलोरPublished: Sep 29, 2018 08:42:49 pm

Submitted by:

Ram Naresh Gautam

मुश्किलें : जमीन अधिग्रहण करने में आ रही हैं कई परेशानियां
परियोजना को समय सीमा के भीतर पूरा करना अत्यंत चुनौतीपूर्ण

Highway

बेंगलूरु-मैसूरु एक्सप्रेस वे की राह में आ रहे कई अवरोध

बेंगलूरु. केन्द्र सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना के तहत बेंगलूरु और मैसूरु के बीच का सफर सड़क मार्ग से मात्र 90 मिनट में पूरा किया जा सकेगा लेकिन ऐसा प्रतीत होता है परियोजना को निर्धारित समय सीमा में पूरा करने अत्यंत चुनौतीपूर्ण है। परियोजना को साकार करने के लिए करीब पांच महीने पूर्व भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) और निर्माण कंपनी दिलीप बिल्डकॉन के बीच एक अनुबंध पर हस्ताक्षर हुआ था जिसके तहत दोनों शहरों के बीच की मौजूदा चार लेन सड़क को छह लेन के एक्सप्रेस वे में परिवर्तित करना है और दोनों ओर चार सर्विस लेन का निर्माण होना है। हालांकि परियोजना ने ज्यादा प्रगति नहीं की है। परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को साकार करने के लिए अनिवार्य रूप से वन विभाग से स्वीकृति प्रमाण पत्र चाहिए लेकिन अब तक प्रमाण पत्र नहीं मिला है।
4915 करोड़ रुपए की इस परियोजना को इस प्रकार से डिजाइन किया गया है कि इस पर वाहन आसानी से 100 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से चल सकेंगे। परियोजना को तेजी से पूरा करने के मकसद से 117 किमी कुल दूरी को दो खंडों में बांटा गया है। 56 किमी खंड के तहत बेंगलूरु-निदाघट्टा खंड है जबकि 61 किमी का निदाघट्टा-मैसूरु खंड है। चूंकि सबसे कम बोली लगाने वाली कंपनी को निविदा जारी होनी थी और भोपाल की दिलीप बिल्डकॉन को 20 अप्रैल को दोनों पैकेजों की निविदा जारी की गई।
अक्टूबर 2020 तक पूरा करने का लक्ष्य
परियोजना कंपनी दिलीप बिल्डकॉन का कहना है कि अगर वन विभाग से आवश्यक स्वीकृति अगले महीने तक मिल जाती है तो वह अक्टूबर 2020 तक 117 किमी की पूरी सड़क का निर्माण कर देंगे। परियोजना को पूरा करने के लिए ढाई वर्ष की समय सीमा तय की गई है लेकिन कंपनी का कहना है कि वे मात्र दो वर्ष में इसे पूरा करने में सक्षम हैं।

भंवर में फंसी है 26 हेक्टेयर भूमि
भूमि अधिग्रहण में एक और पेंच 26 हेक्टेयर भूमि का है। यह भूमि नंदी इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर (नाइस) से संबंधित है लेकिन तीन महीने पूर्व ही कर्नाटक हाई कोर्ट ने इस भूमि पर एनएचएआई के पक्ष में फैसला दे दिया। हालांकि ऐसी संभावना है कि यह मामला अब ऊपरी अदालत में चला जाए। वहीं इस भूमि पर कर्नाटक सरकार ने अपनी एक योजना के तहत गरीबों के लिए मकान बनाए हंै इसलिए अब इस भूमि का अधिग्रहण करने में बड़ी संख्या में लोगों को पुनर्वास करना होगा। परियोजना की राह में रेलवे का भी व्यवधान है। हालंाकि संबंधित मार्ग पर रेल लाइन के ऊपर चार ओवरब्रिज बनाने को लेकर रेलवे ने एनएचएआई को अपनी सहमति दे दी है।

30 हेक्टेयर के लिए चाहिए वन विभाग की मंजूरी
परियोजना के लिए अनुमानत: करीब 725 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहण की आवश्यकता है। एनएचएआई द्वारा आवश्यक भूमि का लगभग 70 प्रतिशत अधिग्रहण किया जा चुका है अनिवार्य शर्त के तहत किसी भी परियोजना को शुरू होने से पहले 80 प्रतिशत भूमि अधिग्रहण करना अनिवार्य है। शेष 10 फीसदी भूमि अधिग्रहण का मुद्दा महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि रामनगर और मंड्या के बीच वन विभाग की 30 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण चुनौतीपूर्ण बन गया है। एक ओर वन विभाग से प्रमाण पत्र लेना है, तो दूसरी ओर भूमि पर कई लोगों ने झोंपडिय़ां बना रखी हैं।
ऐसे में लोगों को वहां से हटाना भी चुनौतीपूर्ण काम है। वन विभाग की इस भूमि का अधिग्रहण करने के लिए एनएचएएआई और वन विभाग के बीच बैठकें हुई हैं और आधिकारिक पत्रों का आदान प्रदान हुआ है लेकिन अब तक कोई सहमति नहीं बनी है। वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार कुछ मुद्दों पर स्पष्टीकरण मिलने के बाद वे सरकार के पास प्रस्ताव को भेजेंगे।
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