साधना आभ्यंतर विषय-विनयमुनि
बेंगलूरु. अहिंसा का सर्वथा आचरण ही चातुर्मास कल्प का प्रधान कारण है। जीव रक्षा ही श्रेष्ठ साधना है। चातुर्मास के निमित्त आरंभ समारम्भ उचित नही है। हमने आज साधना को उत्सव का रूप दे दिया है। साधना आभ्यंतर विषय है। समूह को सुधारने के चक्कर में आज साधक स्वयं की आवश्यक साधना और ध्यान तथा स्वाध्याय को भूल गया है। श्वेतांबर स्थानकवासी जैन श्रावक संघ अलसूर के तत्वावधान में महावीर भवन अलसुर में आयोजित प्रवचन में विनयमुनि ने कहा कि साधु गृहस्थी से ज्यादा परिचय न बढ़ावे। साधक अपना दायरा सीमित करें। ज्यादा परिचय हमें साधना से भटका देता है। बात का बतंगड़ भी वे ही बनाते हैं जिन्हें हम अपना अंतरंग समझते हैं।
बेंगलूरु. अहिंसा का सर्वथा आचरण ही चातुर्मास कल्प का प्रधान कारण है। जीव रक्षा ही श्रेष्ठ साधना है। चातुर्मास के निमित्त आरंभ समारम्भ उचित नही है। हमने आज साधना को उत्सव का रूप दे दिया है। साधना आभ्यंतर विषय है। समूह को सुधारने के चक्कर में आज साधक स्वयं की आवश्यक साधना और ध्यान तथा स्वाध्याय को भूल गया है। श्वेतांबर स्थानकवासी जैन श्रावक संघ अलसूर के तत्वावधान में महावीर भवन अलसुर में आयोजित प्रवचन में विनयमुनि ने कहा कि साधु गृहस्थी से ज्यादा परिचय न बढ़ावे। साधक अपना दायरा सीमित करें। ज्यादा परिचय हमें साधना से भटका देता है। बात का बतंगड़ भी वे ही बनाते हैं जिन्हें हम अपना अंतरंग समझते हैं।