किसी भी प्रकार का भावावेश मस्तिष्क को अशांत और उत्तेजित बना देता है। जो मस्तिष्क को शक्तिशाली बनाना चाहते हैं उन्हें भावावेश से स्वयं को बचाना चाहिए। उन्होंने कहा कि दो क्षण का भावावेश शरीर में जहरीले रसायन पैदा करता है। इससे शारीरिक और मानसिक शक्तियां नष्ट होती हैं। कठिन परिस्थितियों तथा बीमारियों से लडऩे की ताकत खत्म होती है। इसलिए हमें मस्तिष्क को सदा शांत और सहज रखना चाहिए।
नियमित रूप से योग साधना करने से तथा अध्यात्म प्रधान जीवन शैली का विकास करने से हम भावावेश पर विजय पा सकते हैं तथा शांति और सहजता से जी सकते हैं। जैन साहित्य में वर्णित बाहुबली की वीरता की चर्चा करते हुए कहा कि जो क्रोध का उतर क्रोध से देता है वह सच्चा वीर नहीं है। जो क्रोध और आवेश के उफान को शांत करता है वह सच्चा वीर होता है।
उफान रसोई घर में ही नहीं आता, हमारे मस्तिष्क के बर्तन में भी उठता है। हमें प्रेक्षाध्यान के प्रयोगों का अभ्यास कर उसे शांत बनाना चाहिए।