साध्वी कमलप्रज्ञा ने कहा कि नादान आदमी अपने जीवन में दीवार, कोठी, रोटी, लाठी, बेटे-बेटी का सहारा बनता है परन्तु मृत्यु के वक्त बेसहारा होकर जाता है। धर्म और प्रभु का सहारा ही हमें किनारा दिला सकता है। सहारा पकडऩा है तो मजबूत सहारा पकडऩा चाहिए। हल्के फुल्के सहारों से जिन्दगी नहीं चला करती। दोपहर में महिला शिविर का आयोजन किया गया। संघ मंत्री ज्ञानचंद लोढ़ा ने बताया कि रविवार को सुबह 9 बजे से प्रवचन होगा।
संबंधों की प्रगाड़ता से मन की चंचलता
बेंगलूरु. शांतिनगर जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक संघ की ओर से आयोजित धर्मसभा में आचार्य महेन्द्र सागर ने कहा कि संबंधों की प्रगाड़ता मन की चंचलता और भटकान में मूल कारण हैं। उन्होंने कहा कि मन को एकाग्र करने की पूर्व भूमिकाओं में कुछ-कुछ आलम्बन बहुत ही महत्वपूर्ण हैं।
जैसे मंदिर में बैठकर किसी मूर्ति को निहारना, नजरों की एकाग्रता से भम मन की एकाग्रता में सहायता मिलती है।
लम्बे समय तक प्रभु की प्रतिमा को निहारने से परमात्मस्वरूप को आत्मभूत करने की शक्ति तो मिलती है पर भटकते मन को एक स्थान पर टिके रहने का अवसन मिल जाता है। उन्होंने कहा कि मंदिर में मूर्तियों से लेकर पूजा पूजन की प्रकिया और भक्ति के अनेक तरीके भी मन के स्थिरीकरण का कारण हो सकता है। सबसे पहले व्यक्ति को यह ज्ञात होना चाहिए कि मैं जहां पर हूं वहां मुझे उस पवित्र स्थान की मर्यादाओं और पवित्रताओं का ख्याल रखकर ही मन वचन और काया की प्रवृत्ति करनी है।