परिवारों में आनंद का स्रोत बहता रहे-साध्वी डॉ.मंगलप्रज्ञा
मैसूरु. गुंडलपेट स्थित महावीर भवन में आयोजित कार्यशाला को सम्बोधित करते हुए साध्वी मंगलप्रज्ञा ने कहा कि यदि परिवार में आनंद का वातावरण रहता है तो सप्ताह के सभी वार सुखमय बन जाते हैं। परिवार एक वटवृक्ष की तरह होता है, जिस प्रकार वृक्ष की शाखा प्रशाखाएं आदि सभी मिलकर शक्तिशाली बन जाती हैं, ठीक वैसे ही संगठन का अपना महत्व होता है। वह परिवार सुदृढ़ बनता है जहां सभी के विचारों का सम्मान होता है और संवादहीनता की कलुषता नहीं रहती। आग्रह भाव परिवार की स्वस्थता का बाधक तत्व है। परिवार आदर से चलते हैं आग्रह परिवार की जड़ों को कमजोर बनाता है। परिवारों में पारस्परिक सौहार्द का व्यवहार गहराए इसलिए पक्षपात के शस्त्र को घर के दरवाजे में प्रवेश न करने दें। जहां अनेक सदस्य होते हैं वहां भूल होना स्वाभाविक है पर उस भूल को स्वीकार करने के लिए और सुधार के लिए हर वक्त तैयार रहें। सामंञ्जस्य का भाव निरन्तर पुष्ट होता है। सहयोग भाव बरकरार रहे और सहयोगी के प्रति कृतज्ञता की शैली का वहन करते रहे। सॉरी सॉरी और थैंक्यूं कहना माधुर्य जीवन व्यवहार के अमोधसूत्र हैं। एकल परिवार हो या संयुक्त परिवार यदि सभी सदस्य अपनी जिम्मेदारी का पालन करते हैं तो वहां परस्पर प्रेम का रंग गहराता चला जाएगा। आवश्यकता है हर दिन को आनंद और शांति के साथ जीएं। प्राक वक्तव्य में साध्वी शौर्यप्रभा ने परिवार के अल्फावेट की सुन्दर व्याख्या करते हुए कहा प्रेम एवं आदर भाव का विकास होता रहे। सद्गुणों को ग्रहण करें और अपनी इच्छाओं का शमन करें। साध्वी सुदर्शनप्रभा, साध्वी सिद्धियशा, साध्वी डॉ.राजुलप्रभा, साध्वी डॉ.चैतन्यप्रभा एवं साध्वी डॉ.शौर्यप्रभा ने आंगन-आंगन में खुशहाली हो गीत का संगान किया।
मैसूरु. गुंडलपेट स्थित महावीर भवन में आयोजित कार्यशाला को सम्बोधित करते हुए साध्वी मंगलप्रज्ञा ने कहा कि यदि परिवार में आनंद का वातावरण रहता है तो सप्ताह के सभी वार सुखमय बन जाते हैं। परिवार एक वटवृक्ष की तरह होता है, जिस प्रकार वृक्ष की शाखा प्रशाखाएं आदि सभी मिलकर शक्तिशाली बन जाती हैं, ठीक वैसे ही संगठन का अपना महत्व होता है। वह परिवार सुदृढ़ बनता है जहां सभी के विचारों का सम्मान होता है और संवादहीनता की कलुषता नहीं रहती। आग्रह भाव परिवार की स्वस्थता का बाधक तत्व है। परिवार आदर से चलते हैं आग्रह परिवार की जड़ों को कमजोर बनाता है। परिवारों में पारस्परिक सौहार्द का व्यवहार गहराए इसलिए पक्षपात के शस्त्र को घर के दरवाजे में प्रवेश न करने दें। जहां अनेक सदस्य होते हैं वहां भूल होना स्वाभाविक है पर उस भूल को स्वीकार करने के लिए और सुधार के लिए हर वक्त तैयार रहें। सामंञ्जस्य का भाव निरन्तर पुष्ट होता है। सहयोग भाव बरकरार रहे और सहयोगी के प्रति कृतज्ञता की शैली का वहन करते रहे। सॉरी सॉरी और थैंक्यूं कहना माधुर्य जीवन व्यवहार के अमोधसूत्र हैं। एकल परिवार हो या संयुक्त परिवार यदि सभी सदस्य अपनी जिम्मेदारी का पालन करते हैं तो वहां परस्पर प्रेम का रंग गहराता चला जाएगा। आवश्यकता है हर दिन को आनंद और शांति के साथ जीएं। प्राक वक्तव्य में साध्वी शौर्यप्रभा ने परिवार के अल्फावेट की सुन्दर व्याख्या करते हुए कहा प्रेम एवं आदर भाव का विकास होता रहे। सद्गुणों को ग्रहण करें और अपनी इच्छाओं का शमन करें। साध्वी सुदर्शनप्रभा, साध्वी सिद्धियशा, साध्वी डॉ.राजुलप्रभा, साध्वी डॉ.चैतन्यप्रभा एवं साध्वी डॉ.शौर्यप्रभा ने आंगन-आंगन में खुशहाली हो गीत का संगान किया।