बैंगलोर

मेघा ट्रॉपिक्स ने पूरे किए 7 साल

भारत-फ्रांस की संयुक्त साझेदारी में भेजा गया उपग्रह, उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के जलचक्र और ऊर्जा विनियम पर किया अहम अध्ययन, प्रकाशित हुए कई शोध पत्र

बैंगलोरOct 14, 2018 / 07:54 pm

Rajeev Mishra

मेघा ट्रॉपिक्स ने पूरे किए 7 साल

बेंगलूरु. मानसून और जलवायु परिवर्तन से जुड़े विविध आयामों के अध्ययन के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और फ्रांसीसी अंतरिक्ष एजेंसी सीएनईएस द्वारा संयुक्त रूप से विकसित प्रथम मौसम उपग्रह मेघा ट्रॉपिक्स ने अपनी ऑपरेशनल कक्षा में सात साल पूरे कर लिए है। इस उपग्रह को पीएसएलवी सी-18 से 12 अक्टूबर 2011 को छोड़ा गया था।
इसरो ने कहा है कि अपने सात वर्षों के ऑपरेशनल काल में मेघा ट्रॉपिक्स ने उष्णकटिबंधीय मौसम तथा वायुमंडल को समझने के लिए मूल्यवान आंकड़े दिए जिससे कई शोध पत्रों का प्रकाशन हुआ है। इस उपग्रह में जल चक्र और ऊर्जा विनिमय के अध्ययन के लिए विशेष पे-लोड हैं। इससे उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में संवहनीय प्रणाली के जीवन चक्र को समझने तथा वायुमंडल में आद्र्रता को प्रभावित करने वाले कारकों के बारे में अहम जानकारियां मिली। इस उपग्रह में चार प्रमुख पे-लोड हैं जिनमें वर्षा तथा वायुमंडलीय संरचनाओं के सूक्ष्मतरंग विश्लेषण के लिए सीएनइएस और इसरो द्वारा संयुक्त रूप से विकसित प्रतिबिंबित रेडियोमीटर एमएडीआरएएस (मद्रास), आद्र्रता के उध्र्वाधर प्रोफाइल की जांच के लिए सीएनईएस द्वारा विकसित (साफाइर), रेडिएशन मापने के लिए सीएनइएस द्वारा विकसित एससीएआरएबी (स्क्रैब) और तापीय एवं आद्र्रता के उध्र्वाधर प्रोफाइलिंग के लिए इटली से खरीदा गया रेडियो संवेदक रोसा शामिल है।
इसरो ने कहा है कि यह उपग्रह बादलों में संघनित जल, वायुमंडल में जल वाष्प, वर्षा और वाष्पन सहित उष्णकटिबंधीय वायुमंडल में जल चक्र के संदर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण वैज्ञानिक आंकड़े उपलब्ध करा रहा है। इसके आधार पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई वैज्ञानिक शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं और हो भी रहे हैं। यह जलवायु अनुसंधान के लिए एक विशिष्ट उपग्रह है विषुवत रेखा से 20 डिग्री के झुकाव के साथ पृथ्वी से 8 6 7 किमी की ऊंचाई पर कक्षा में स्थापित किया गया है। इस उपग्रह से प्राप्त आंकड़ों से भारत ही नहीं हिंद महासागर क्षेत्र के सभी देशों और दुनिया के अन्य हिस्सों को भी फायदा हो रहा है। मेघा ट्रॉपिक्स का वजन 1000 किलोग्राम है और उष्णकटिबंधीय जलवायु के अध्ययन के लिए अंतरिक्ष में भेजा गया यह दूसरा वैश्विक मिशन है। इससे पहले नासा और जापान ने वर्ष 1997 में इस तरह का एक मिशन भेजा था।
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