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मानसिक सहिष्णुता का विकास हो: देवेंद्रसागर

locationबैंगलोरPublished: Jul 10, 2020 12:49:49 pm

राजाजीनगर में प्रवचन

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बेंगलूरु. राजाजीनगर के शंखेश्वर पाश्र्वनाथ जैन संघ में आयोजित चातुर्मासिक प्रवचन में आचार्य देवेंद्रसागर सूरी ने कहा कि सहना सुखी जीवन की एक अनिवार्य अपेक्षा है। जो सहना जानता है, वही जीना जानता है। जिसे सहना नहीं आता वह न तो शांति से स्वयं जी सकता है और न अपने आसपास के वातावरण को शांतिमय रहने देता है। जहां समूह है, वहां अनेक व्यक्तियों को साथ जीना होता है। जहां दूसरे के विचारों को सुनने, समझने, सहने और आत्मसात करने की क्षमता नहीं होती, वहां अनेक उलझनें खड़ी हो जाती हैं। जितने भी कलह उत्पन्न होते हैं, चाहे वे पारिवारिक हों या सामाजिक, उनके मूल में एक कारण असहिष्णुता है।
आचार्य ने कहा कि सहनशीलता और असहनशीलता की अभिव्यक्ति का संबंध शरीर, वाणी और मन तीनों के साथ है। शरीर को जिस स्थिति और जिस वातावरण में रखा जाता है, वह वैसा ही बन जाता है। मौसम बदलता रहता है। शरीर हर मौसम को झेल सके, ऐसा अभ्यास होना चाहिए। शरीर की तरह मन को भी सहने का अभ्यास होना आवश्यक है।
मानसिक असहिष्णुता ही तनाव, घुटन, कुंठा, उच्छृंखलता, अनुशासनहीनता आदि को जन्म देती है। मानसिक असहिष्णुता आपसी मैत्री की सरिता को सुखा देती है। पिता-पुत्र, सास-बहू व देवरानी-जेठानी के झगड़ों की तो बात क्या, पति-पत्नी के रिश्तों के बीच भी दरारें पड़ जाती हैं। आवश्यक है, मानसिक सहिष्णुता का विकास हो। सहिष्णुता का एक प्रकार है वाणी की सहिष्णुता।
जो व्यक्ति वाणी पर अंकुश रखना जानता है, वह असत्य भाषण से तो बचता ही है, आवेश और उत्तेजनापूर्ण भाषा पर भी नियंत्रण कर लेता है। इस तरह शरीर, मन और वचन इन तीनों योगों को साध लिया जाए तो सहिष्णुता का गुण स्वत: विकसित हो जाएगा। सहिष्णुता का विकास चेतना में शांति और आनंद का अवतरण करने वाला सिद्ध होगा।
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