जवाब किसी के पास नहीं उन्होंने कहा कि छोटे शहरों में तहसील मुख्यालय और ब्लॉकस्तर पर स्थित सहकारी बैंकों ने ग्रामीण क्षेत्रों के विकास में काफी योगदान दिया है। इन बैंकों तक आम आदमी की भी पहुंच होती है। लेकिन अब सहकारिता क्षेत्र के 4-5 बैंकों का विलय कर एक बड़ा बैंक बनाने का प्रस्ताव लाया जा रहा है। इससे आम आदमी को क्या लाभ होगा, इसका जवाब किसी के पास नहीं है।
सहकारिता क्षेत्र की अनियमितताएं दूर करने के लिए इन बैंकों को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के दायरे में लाकर प्रति वर्ष लेखा-जोखा पेश करने का प्रस्ताव सराहनीय था।लेकिन अब इन बैंकों के विलय की बातें की जा रही हैं। इससे आम आदमी इन बैंकों से भी दूर हो जाएगा। जबकि सहकारिता बैंकों के उपभोक्ता आम आदमी हैं।
सहकारिता क्षेत्र में 4 दशकों से कार्यरत पूर्व सांसद सी.नारायणस्वामी के अनुसार ऐसा फैसला लेने से पहले सहकारिता क्षेत्र के जानकारों के साथ विचार विमर्श किया जाना चाहिए। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि सहकारिता क्षेत्र में भी भ्रष्टाचार है लेकिन 5-6 सहकारी बैंकों का विलय इस समस्या का समाधान नहीं है। इन बैंकों की खामियां दूर करने के लिए अन्य विकल्पों पर ध्यान दिया जाना चाहिए।