आम तौर पर शिवमोग्गा जिला बंदर बुखार से प्रभावित है। लेकिन केरल के सीमावर्ती क्षेत्रों में भी मरीजों की पुष्टि चिंताजनक है। गत वर्ष जनवरी में भी केरल के दो लोग संक्रमित हुए थे। लेकिन उपचार के बाद दोनों ठीक हो गए थे। हालांकि दोनों ने एच. डी. कोटे तालुक में एक आदिवासी बस्ती का दौरा किया था। लेकिन केरल में दो नए मरीजों के मिलने से वन विभाग और स्वास्थ्य विभाग कोई जोखिम नहीं उठाना चाहता है।
वन विभाग (Forest Department) ने अपने कर्मचारियों को निर्देश दिए गए हैं कि किसी भी बंदर के मरने पर फौरन इसकी जानकारी दी जाए। बंदर के शव की जांच हो। वन अधिकारियों, वन कर्मचारियों व जंगल क्षेत्र में काम करने वाले पुलिसकर्मियों को एहतियातन टिक रिपेलेंट्स का इस्तमाल करने के लिए कहा गया है।
मैसूरु और वायनाड के स्वास्थ्य अधिकारियों ने कुछ दिनों पहले संयुक्त आपात बैठक भी बुलाई थी। केरल के राजस्व व स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी भी इस बैठक में शामिल हुए थे। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के अनुसार एक सप्ताह तक बुखार, मांसपेशियों में दर्द, गंभीर सर्दी-खांसी व त्वचा के चकत्तों को लोग नजरअंदाज नहीं करें। फौरन चिकित्सक से परामर्श लें। हालांकि ये लक्षण डेंगू के भी हो सकते हैं।
मैसूरु जिला मच्छर जनित रोग नियंत्रण अधिकारी डॉ. चिदांबर ने बताया कि नोवल कोरोना वायरस यानी कोविड-19 की तरह बंदर बुखार एक से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलता है। इसलिए चिंता नहीं एहतियात बरतने की जरूरत है। समय रहते उचित उपचार से बंदर बुखार पूरी तरह से ठीक होने वाली बीमारी है। डॉ. चिदांबर ने कहा कि बंदर बुखार से निपटने के लिए संयुक्त अंतर-राज्य समन्वय टीम गठित की गई है।