अब भारत इस मामले मेें आत्मनिर्भर हो रहा है। अंतरिक्ष परिसंपत्तियों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए दूरबीनों एवं राडारों का एक नेटवर्क स्थापित किया जा रहा है। योजना के मुताबिक देश के चारों कोनों में दूरबीन एवं राडार स्थापित किए जाएंगे ताकि अंतरिक्ष मलबे के संचालन का सटीक डाटा रीयल टाइम में मिल सके। बेंगलूरु में इसी सिलसिले में पिछले वर्ष अंतरिक्ष स्थितिपरक जागरुकता केंद्र की स्थापना की गई थी।
इसरो और एरीज के बीच हुए करार के मुताबिक दोनों संस्थाएं मिलकर ऑप्टिकल टेलीस्कोप अवलोकन सुविधा केंद्र स्थापित करेंगे जिससे पृथ्वी निकट कक्षा में चक्कर काट रहे अंतरिक्ष मलबों को ट्रैक किया जा सकेगा। इसके अलावा दोनों संगठन अंतरिक्ष मौसम, खगोल भौतिकी और पृथ्वी की निचली कक्षाओं का मिलकर अध्ययन करेंगे। देश के पहले मानव अंतरिक्ष मिशन (गगनयान) के मद्देनजर भी यह काफी महत्वपूर्ण है।
———–
कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
-पृथ्वी की निचली कक्षाओं में लगभग 6 हजार टन मलबे
-25 से 28 हजार किमी प्रति घंटे की रफ्तार
-अब लांच हुए 23 हजार से अधिक उपग्रह
– 5 फीसदी ही ऑपरेशनल, बाकी बन चुके हैं मलबा
-एंटी सैटेलाइट उपग्रहों के परीक्षण से भी पैदा होते हैं बड़े पैमाने पर अंतरिक्षीय कचरे
-मूल्यवान अंतरिक्ष परिसंपत्तियों की अंतरिक्ष मलबे के नजदीक जाने तथा टकराव से बचाने के उद्देश्य से इसरो ने स्थापित किया है अंतरिक्ष स्थितिपरक जागरूकता एवं प्रबंधन निदेशालय
-निष्क्रिय उपग्रहों, चक्कर लगाते पिंडों के टुकड़ों, पृथ्वी के समीप क्षुद्र ग्रहों तथा प्रतिकूल अंतरिक्ष मौसम से सुरक्षा के लिए विभिन्न खगोल एवं शोध संस्थाओं से किया है करार