उन्होंने कहा कि आज यही सिद्धरामय्या और जनता दल-एस के नेता एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहें है। इससे साबित होता है कि कांग्रेस-जद का गठबंधन केवल एक अवसरवादी गठबंधन था। इस मौकापरस्त गठबंधन के कारण से वर्ष 2018 के चुनाव का जनादेश अपमानित हुआ था।
उन्होंने कहा कि इस चुनाव के दौरान सिद्धरामय्या ने स्वयं को मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित किया था। इसके बावजूद कांग्रेस 89 सीटों पर सिमट गई। स्वयं सिद्धरामय्या को उनके गृह जिले मैसूरु के चामराजा विधानसभा क्षेत्र में करारी हार हुई थी। सिद्धरामय्या सरकार के 12 से अधिक मंत्री चुनाव में हारे थे लेकिन सिद्धरामय्या ने जनादेश का अपमान करते हुए केवल भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए जद-एस के साथ अवसरवादी गठबंधन किया था। ऐसे सिद्धरामय्या को अब नैतिकता पर भाषण देने का कोई अधिकार नहीं है। समन्वय समिति का अध्यक्ष होने के बावजूद सिद्धरामय्या ने तत्कालीन मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के साथ अघोषित युद्ध छेड़ा था। गठबंधन सरकार की किसान ऋण माफी योजना समेत किसी भी योजना में सिद्धरामय्या ने सहयोग नहीं दिया था।
समन्वय समिति में तत्कालीन प्रदेश जद-एस इकाई के अध्यक्ष एएच विश्वनाथ को भी सिद्धरामय्या ने जानबूझ कर शामिल नहीं किया था।