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उबरे मरीज अब हो रहे हैं म्यूकोरमाइकोसिस के शिकार

locationबैंगलोरPublished: May 12, 2021 09:24:31 pm

Submitted by:

Nikhil Kumar

– बढ़ते मामलों ने बढ़ाई चिंता- डबल म्यूटेंट वायरस हो सकता है जिम्मेदार- पहले संक्रमण के बाद, अब उपचार के दौरान ही चपेट में

उबरे मरीज अब हो रहे हैं म्यूकोरमाइकोसिस के शिकार

बेंगलूरु. कोरोना संक्रमण से उबरे मरीज मरीज दुर्लभ व गंभीर संक्रमण का शिकार हो रहे हैं। चिकित्सकीय भाषा में इसे म्यूकोरमाइकोसिस (mucormycosis) कहते हैं। गत वर्ष भी ऐसे मामले सामने आए थे। लेकिन, बीते एक माह के दौरान ऐसे मरीजों की संख्या में इजाफा चिकित्सकों के लिए चुनौती है। कर्नाटक ही नहीं देश के अन्य हिस्सों में भी बड़ी संख्या में ऐसे मामले सामने आ रहे हैं।

मरीजों में अनियंत्रित मधुमेह वाले ज्यादा
म्यूकोरमाइकोसिस एक तरह का फंगस संक्रमण है (जिसे पहले जाइगोमाइकोसिस नाम से भी जाना जाता था) जो कोविड से ठीक हुए मरीजों को ज्यादा चपेट में ले रही है। मरीजों में मधुमेह (Diabetes) वाले ज्यादा हैं। कुछ मामलों में कोविड पॉजिटिव होने के दो से तीन दिनों में ही मरीज इसकी चपेट में आए हैं। पहले भी यह बीमारी सामने आती थी लेकिन कोविड के मरीजों में खतरा अधिक है। वैसे प्रदेश स्वास्थ्य विभाग के पास ऐसे मरीजों की कोई सूची नहीं है।

गहण शोध की जरूरत
चिकित्सकों के अनुसार कोरोना वायरस का बी.1.617 वेरिएंट (डबल म्यूटेंट) इसका कारण हो सकता है। हालांकि, इसका कोई ठोस वैज्ञानिक आधार नहीं है। गहण शोध की जरूरत है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि डबल म्यूटेंट मामले सामने आने के बाद से म्यूकोरमाइकोसिस के मरीज बढ़े हैं।

जेनेटिक सीक्वेंसिंग (आनुवांशिक अनुक्रमण) के नोडल अधिकारी डॉ. वी. रवि के अनुसार बी.1.617 वेरिएंट के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। कर्नाटक में पहले ही डबल म्यूटेंट के 64 मरीज मिल चुके हैं।

अलग व्यवहार कर रहा है म्यूटेंट वायरस
इएनटी सर्जन डॉ. दीपक एच. ने बताया कि ऐसा नहीं है कि कोरोना महामारी से पहले म्यूकोरमाइकोसिस के मरीज नहीं मिलते थे। महामारी के पहले साल में दो से तीन मरीजों का उन्होंने उपचार किया है। लेकिन, बीते तीन सप्ताह में उन्होंने करीब 38 मरीजों का उपचार किया है। ज्यादातर कोविड पॉजिटिव अनियंत्रित मधुमेह के मरीज म्यूकोरमाइकोसिस के शिकार हो रहे हैं। म्यूटेंट वायरस मूल वायरस से अलग व्यवहार कर रहा है। अनुमान के अनुसार म्यूटेंट वायरस का साइनस इम्यूनिटी से भी रिश्ता है। साइनस इम्यूनिटी श्वास प्रणाली का हिस्सा है।

उपचार के दौरान संक्रमण चिंता का विषय
राज्य क्रिटकल केयर सपोर्ट यूनिट के सदस्य डॉ. अनूप अमरनाथ ने बताया कि कोविड मरीजों के उपचार के दौरान म्यूकोरमाइकोसिस से ग्रसित होना नया है। पहले मरीज के संक्रमण से उबरने के करीब 10 दिनों के बाद ऐसे मामले सामने आते थे। कोरोना वायरस के नए वेरिएंट इसके जिम्मेदार हो सकते हैं।

ये भी हो सकता है कारण
कुछ चिकित्सकों के अनुसार नमी वाले मेडिकल ऑक्सीजन में उपयोग किया गया खराब गुणवत्ता वाला पानी भी इसका जिम्मेदार हो सकता है। सावधानी बरतने की जरूरत है।

आंखों की रोशनी खोने के मामले भी
पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. रविन्द्र मेहता ने बताया कि उन्होंने भी म्यूकोरमाइकोसिस के कुछ मरीजों का उपचार किया है। कोरोना वायरस से संक्रमित होने के दो सप्ताह बाद यह संक्रमण परेशान कर सकता है। बलगम जांच में इसका पता लगता है। इम्यूनिटी कम होने के कारण मधुमेह वाले कोविड मरीजों में यह संक्रमण आम है। मरीज को धुंधला दिखाई देने लगता है और साइनस में संक्रमण हो जाता है। दिल्ली सहित देश के कई हिस्सों में मरीजों के आंखों की रोशनी खोने के मामले भी सामने आए हैं।

इसलिए है खतरनाक
नेत्र रोग विशेषज्ञों का कहना है कि अमूमन यह नाक से शुरू होता है और नेजल बोन और आंखों को खराब कर सकता है। एक बार फंगल होने के बाद तुरंत इलाज की आवश्यकता होता है। ऐसे में नाक में सूजन या अधिक दर्द, आंखों से धुंधला दिखाई देने के बाद तुरंत चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए। यह आंख की पुतलियों या आसपास के क्षेत्र को लकवाग्रस्त कर सकता है।

ये भी हैं तथ्य
– चिकित्सकों के अनुसार आंख, गाल में सूजन और नाक में रुकावट अथवा काली सुखी पपड़ी पडऩे के तुरंत बाद एंटीफंगल थेरेपी शुरू कर देनी चाहिए।
– ज्यादा दिनों तक बीमारी का लाइलाज छोडऩे से मस्तिष्क में संक्रमण बढऩे का खतरा रहता है।

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