scriptकर्नाटक के हिरेबिदनूर गांव में एक भी मुस्लिम नहीं फिर भी मनाया जाता है मुहर्रम | muharram | Patrika News

कर्नाटक के हिरेबिदनूर गांव में एक भी मुस्लिम नहीं फिर भी मनाया जाता है मुहर्रम

locationबैंगलोरPublished: Aug 11, 2022 12:23:55 am

Submitted by:

Satish Sharma

हर साल मनाया जाता है मुहर्रम का मातम, मस्जिद में पुजारी करते हैं पूजा…मुसलमान रखते हैं ताजिए, निकालते हैं जुलूस

कर्नाटक के हिरेबिदनूर गांव में एक भी मुस्लिम नहीं फिर भी मनाया जाता है मुहर्रम

कर्नाटक के हिरेबिदनूर गांव में एक भी मुस्लिम नहीं फिर भी मनाया जाता है मुहर्रम

बेलागावी. जिले में गांव में हर साल मोहर्रम मनाया जाता है। खासबात यह है कि इस गांव में एक भी मुसलमान नहीं है फिर भी हर साल पांच दिनों तक ताजिया रखा जाता है।
जिले के सवदत्ती तालुक के हिरेबिदनूर गांव की सडक़ों को इस अवसर पर रंगीन रोशनी से रोशन किया जाता है। जुलूस निकलता है और ताजिया दफन भी किया जाता है। इस गांव में इस्लाम के नाम पर एकमात्र मस्जिद है, जहां एक हिंदू पुजारी पारंपरिक हिंदू तरीके से देश की समृद्ध समकालिक संस्कृति के उत्सव में धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। तीन हजार लोगों की आबादी वाले इस गांव में अधिकांश लोग कुरुबा और वाल्मीकि समुदाय से हैं।
गांव के लिए खास है मुहर्रम
गांव के एक शिक्षक उमेश्वर मरगल ने कहा कि मुहर्रम हिरेबिदनूर के लिए खास है। इन पांच दिनों में परंपरा की झलक देखने को मिलती है। यह अवसर कलाकारों को कला के कई रूपों को प्रदर्शित करने के लिए एक मंच उपलब्ध करता है। जुलूस के दौरान करबल नृत्य, हिरेबिदनूर की अद्वितीय रस्सी कला और पहले और पांचवें दिन की अलाव में लगाई गई आग को पार करने की प्रथा खास है। उमेश्वर ने कहा कि इस अवसर पर पूजा करते समय गांव के बुजुर्गों को वरीयता दी जाती है। उन्हें बचपन से ही अलग, फिर भी समान संस्कृतियों के इस शानदार आगमन को देखने का सौभाग्य मिला है। वह बचपन से इस परंपरा को देखते आ रहे हैं और आजतक यह नहीं बदली है।
फकीरेश्वर स्वामी के नाम पर है मस्जिद
इ स धार्मिक स्थल को फकीरेश्वर स्वामी की मस्जिद कहा जाता है, जहां ग्रामीण अपनी मन्नत पूरी करने के लिए प्रार्थना करते हैं। क्षेत्र के विधायक महंतेश कौजालगी ने हाल ही में मस्जिद भवन के जीर्णोद्धार के लिए 8 लाख रुपए मंजूर किए थे।
मस्जिद के पुजारी यल्लप्पा नायकर ने कहा कि हम हर साल मुहर्रम के दौरान पास के बेविनकट्टी गांव से एक मौलवी को आमंत्रित करते हैं। वह एक सप्ताह के लिए मस्जिद में रहते हैं और पारंपरिक इस्लामी तरीके से नमाज अदा करते हैं।
अन्य दिनों में, मस्जिद की जिम्मेदारी हमारी होती है। दो मुस्लिम भाइयों ने बहुत समय पहले दो मस्जिदों की स्थापना की थी। एक गुटनट्टी के पास और दूसरी हिरेबिदनूर में। उनकी मृत्यु के बाद, स्थानीय लोगों ने मस्जिदों में पूजा करना जारी रखा और हर साल मुहर्रम मनाते हैं।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो