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मुमुक्षु कुणाल ने किए संतों के दर्शन

locationबैंगलोरPublished: Nov 05, 2020 07:19:49 pm

Submitted by:

Yogesh Sharma

आचार्य अजीतशेखर ने की नमि मुनि के तप की अनुमोदना

मुमुक्षु कुणाल ने किए संतों के दर्शन

मुमुक्षु कुणाल ने किए संतों के दर्शन

बेंगलूरु. उग्रविहारी संत मुनि कमल कुमार के दर्शन के लिए मुमुक्षु कुणाल बाबेल सपरिवार आया। मुमुक्षु ने मुनि वृंद के दर्शन कर धन्यता का अनुभव किया। उनकी मां, बहन एवं शांतिनगर समाज की तरफ से नरेंद्र नाहटा ने मुमुक्षु कुणाल के प्रति मंगल कामना व्यक्त की। कांता सेठिया ने गीतिका के माध्यम से मुमुक्षु के प्रति अपने भाव व्यक्त किए। मुनि कमल कुमार ने कहा कि तुम अपनी विनम्रता, सरलता, स्वछता व सहिष्णुता को बढ़ाते हुए गुरु दृष्टि अनुसार अपनी साधना करना, जिससे आत्मा का कल्याण, परिवार और संघ का सुनाम हो। मुमुक्षु कुणाल ने कहा तेरापंथ धर्म संघ में दीक्षित होना तनाव मुक्त होना है। यह अपने आप में शान्ति का राज है। संतोष गोठी एवं बाबूलाल खांटेड़ ने साहित्य से मुमुक्षु का सम्मान किया।

आचार्य महाश्रमण के आज्ञानुवर्ति उग्रविहारी मुनि कमल कुमार के सहयोगी मुनि नमि कुमार के इस चार्तुमास में चल रहे तीसरे मासखमण की सुखसाता पूछने आचार्य अजीतशेखर सूरी चिकपेट आदिनाथ मंदिर से अपने शिष्य मंडली के साथ पहुंचे। मुनि ने आचार्य का स्वागत करते हुए कहा कि 5 वीं बार इनसे मिलन हो रहा है, हर मिलन उत्साहवर्धक एवं जिनशासन की प्रभावना का विशेष निमित्त बना है। आचार्य अजीतशेखर सूरी ने मुनि नमि कुमार के तप की अनुमोदना की। नमि मुनि की तपस्या की अनुमोदना करते हुए कहा कि तपस्या की अग्नि से सारे कर्मों का नाश किया जा सकता है।
आज लोग डायटिंग करते हैं, जिम जाते हैं तन की चर्बी को घटाने के लिए, पर तपस्या करना ही सही मायने में वह डायटिंग है जिससे कर्मों की चर्बी को मलिन किया जा सकता है। अनेक विषयों पर धर्म चर्चा की व कहा कि तपस्वी के दर्शन करना पुण्य का योग है। मुनि कमल कुमार ने कहा हमारा चातुर्मास चेन्नई था, आचार्य महाश्रमण की कृपा से हमारा चातुर्मास शांतिनगर हुआ। उत्साही श्रावक-श्राविकाओं ने चातुर्मास को सफल बनाने में शक्ति और भक्ति का परिचय दिया है। मुनि नमी कुमार ने स्थान की सुविधा एवं भक्ति भावना को देखते हुए जीवन मे पहली बार एक चातुर्मास में तीन मासखमण करने का लक्ष्य बनाकर पूरे धर्मसंघ मे एक कीर्तिमान बनाया है। आचार्य को रमेश गिलुन्डिया, पारस पगारिया एवं माणिकचंद बलदोटा ने साहित्य भेंट किया।
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