बैंगलोर

मुनि ने बहनों को सुदर्शना बनने की प्रेरणा दी

शूले स्थानक में धर्मचर्चा

बैंगलोरAug 03, 2020 / 03:04 pm

Yogesh Sharma

मुनि ने बहनों को सुदर्शना बनने की प्रेरणा दी

बेंगलूरु. अशोकनगर शूले जैन स्थानक में श्रमण संघीय डॉ. समकित मुनि ने ‘समकित की यात्रा’ में रक्षाबंधन पर अपने प्रवचन में कहा कि भारत त्योहारों का देश है। हर त्योहार के पीछे कोई प्रेरणादायी घटना होती है। उन घटनाओं को चिरस्थाई बनाने के लिए पर्व का रूप मिलता है। रक्षाबंधन का पर्व भाई-बहन के स्नेह का त्योहार है। बिना बहन का बचपन बहुत लंबा होता है, जो कि मुश्किल से कटता है। बचपन में बहन का साथ है तो हंसते खेलते रूठते मनाते बचपन कब बीत जाता है पता नहीं चलता। भाई बहन का प्रेम दुनिया में सबसे निराला होता है बहन के साथ बिताए पल खुशियों में जल्दी व्यतीत हो जाते हैं। यह पर्व स्नेह का पर्व है। भाई बहन का प्यार सबसे अद्भुत होता है बहन ही हमेशा भाई को संभालती है। भाइयों के प्रति बहन के हिस्से में बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। एक बहन ही होती है जो भाई के आंसुओं को मुस्कान में बदलने की ताकत रखती है। भाई की वेदना को दूर करने की क्षमता बहन में होती है। जब-जब भाई परेशान हुआ है तब तब उस भाई को संभालने बहन हमेशा पहुंचती ही है। बाहुबली और उनकी दोनों बहनो का उदाहरण देते हुए मुनि ने कहा जो बहन अपनेभाई को संभाल लेती है उस भाई को केवल्य प्राप्त हो जाता है। भाई की अकड़ मिटाना बहन की जिम्मेदारी है। शर्त केवल इतनी है कि कभी बहन न अकड़े। बहन अकड़ जाए तो रिश्ते बिखर जाते हैं। भाई की अकड़ को बहन को छोडक़र और कोई दूर नहीं कर सकता।बहन में इतनी शक्ति होती है।
भाई नंदी वर्धन और बहन सुदर्शना का प्रसंग सुनाते हुए डॉ. समकित मुनि ने कहा बहन में वह ताकत होती है भाई भूखा हो और किसी के हाथ से खाना ना खा रहा हो, परेशान हो ऐसे भाई को जिमाने (खिलाने) की हिम्मत गर किसी में है तो वह है बहन। भाई को केवल बहन ही संभाल सकती है।
राखी का पर्व भाई-बहन के रिश्ते का पर्व है। रिश्ते हमेशा मधुर रखो। प्रेम-प्यार से रिश्तों को निभाने की प्रेरणा यह पर्व देता है। रिश्तों को निभाना नहीं जीना सीखो। जो रिश्तों को जीता है वह रिश्ते निभा जाता है। रिश्ते तब जिए जाते हैं जब हम सामने वाले से कोई अपेक्षा नहीं रखते। जो अपने भाई को संभालती है वह सुदर्शना होती है, भाई को बिगाडऩे वाली सूर्पनखा होती है। मुनि ने बहनों को सुदर्शना बनने की प्रेरणा दी। त्योहार हमारे रिश्तों में जो नफरत की दीवार खड़ी है उसे मिटाने आते हैं। प्रेम की सौगात लेकर पर्व आते हैं। रिश्तों के धागे इतने कमजोर मत बनाओ की गांठ लगाते लगाते उम्र गुजर जाए। हमारे प्रेम भरे एक वाक्य से यदि रिश्ता टूटने से बचता हैतो बोल देना चाहिए। वैर भाव की गंदगी दूर करके आपसी सद्भावना को बढ़ा कर पर्व को मनाने में ही मानवता का सार छिपा है। संचालन संघ के मंत्री मनोहर लाल बंब ने किया।
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