परस्पर सहयोग और सामंजस्य ही समृद्ध समाज की निशानी- देवेंद्रसागर
धर्मसभा का आयोजन

बेंगलूरु. आचार्य देवेंद्रसागर सूरी ने राजाजीनगर के शंखेश्वर पाश्र्वनाथ जैन संघ में प्रवचन देते हुए कहा कि जब तक एक-दूसरे की मदद सद्भावना के साथ करते रहेंगे, तब तक कोई भी नहीं गिरेगा चाहे व्यापार हो, परिवार हो या फिर समाज। सदियों से सामंजस्य का यह नियम चला आ रहा है कि मिलकर रहने से ताकत सौ गुना हो जाती है, मनोबल बढ़ जाता है। इसका अभिप्राय किसी नकारात्मक उद्देश्य से समूह बनाने और संकुचित होने के किसी सिद्धांत से नहीं बल्कि समग्र रूप में सभी को सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से संपन्न करने की पुष्ट भावना से है। मिल-जुलकर रहने का मापदंड कुछ खास लोगों का एक साथ हो जाना कतई नहीं है। मानव समाज का इतिहास गवाह है कि सुख-शांति और संतोष की प्राप्ति ही इस जीवन का उद्देश्य है। हम जहां पर भी रहें वहां युद्ध या कलह का कोई महत्व न हो और सब सुरक्षित महसूस करें, जीवन का आनंद लें। मनुष्य को अपना हर क्षण स्वयं को विकसित करने में लगाना है। इस राह में शांति और सहयोग सकारात्मकता या सामंजस्य का प्रतीक होने के साथ-साथ उस समूह के शक्तिशाली होने का परिचायक भी तो बन जाता है। इसलिए मिलकर रहने और एक-दूसरे की मदद वाले प्रतीकों के प्रति मानव सहज आकर्षित हो जाता है। उन्होंने कहा कि इससे एक बात स्पष्ट है कि जीवन को सुखी बनाना, उसे सुकून पहुंचाना, उसे संपन्न करना गलत नहीं है। यहां सुकून को सही तरीके से समझने की आवश्यकता है। येन, केन, प्रकारेण बने संबंध और सहयोग केवल बाहरी समृद्धि दर्शाने वाले तत्व हैं, पर आत्मीय होकर समाज से हिल-मिलकर रहना सहयोग की किसी सीमित परिभाषा से कहीं बढक़र और प्रभावशाली भी है। इसका अर्थ करुणा, दया, दान, उदारता है जो मानवीयता में ही निहित है। समाज में सबके लिए सहयोगी और मित्र बनने का अर्थ अपनी क्षमता को उस शक्ति में बदलना है जो सिर्फ अपनी भलाई करने में नहीं लगा हुआ है, बल्कि अन्य की उन्नति भी उसमें सम्मिलित है। किसी समाज का हमेशा शांतिपूर्ण रहना और उसका विकसित होना उस समाज की सच्ची चमक-दमक है। यानी धन-दौलत विलासिता नहीं बल्कि सहयोग और सामंजस्य ही किसी सुखी और समृद्ध समाज या समूह की निशानी कही या मानी जा सकती है। अंत में आचार्य ने कहा की आज विश्व समाज की तरफ गौर कीजिए और जिस किसी देश को देखिए, वह अपने सार्वजनिक जीवन में लोगों के बीच पारस्परिक सामंजस्य के संसाधनों को जोडऩे में लगा हुआ है। इसके लिए वह तरह-तरह के विशेषज्ञों और विद्वानों भी आमंत्रित करने को तैयार रहता है जो कई बार उसे बहुत अच्छी सलाह और सुझाव देकर जाते हैं। ऐसे में यह सोचना स्वाभाविक है कि आज पूरे मानव समाज में असुरक्षा की भावना क्यों नजर आती है। क्यों हर इंसान खुद को इस कदर अकेला पाता है।
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