ये बातें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) व एनइपी मसौदा समिति के सदस्य प्रो. एम. के. श्रीधर ने कही। वे मंगलवार को कलबुर्गी के पास कर्नाटक केंद्रीय विश्वविद्यालय (सीयूके) में एनइपी के कार्यान्वयन पर दो दिवसीय कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि संबोधिक कर रहे थे। इस कार्यक्रम का आयोजन सेंटर फॉर एजुकेशनल एंड सोशल स्टडीज, बेंगलूरु और सीयूके ने किया।
प्रावधानों की व्यापकता को देखते हुए उन्होंने स्वीकार किया कि एक बार में एनइपी को पूरी तरह से लागू करना संभव नहीं है। प्रत्येक संस्थान कुछ विशिष्ट प्रावधानों पर ध्यान केंद्रित कर सकता है और कार्यान्वयन के लिए अपने स्वयं के मॉडल विकसित कर सकता है। यदि सीयूके बहु-विषयक शिक्षा के प्रावधान पर ध्यान केंद्रित करता है और कार्यान्वयन का एक मॉडल विकसित करता है, तो इसका मॉडल देश के अन्य संस्थानों द्वारा अपनाया जा सकता है। प्रबंधन की मानसिकता को बदलने और उन्हें पुनव्र्यवस्थित करने की प्रक्रिया पर एक मॉडल हो सकता है। कार्यान्वयन की प्रक्रिया में हितधारकों के सामने आने वाली चुनौतियों को दूर करने के लिए एक मॉडल भी हो सकता है।
केंद्र सरकार के साथ केंद्रीय विश्वविद्यालयों की निकटता की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि केंद्रीय संस्थानों को सीधे नीति निर्माताओं तक पहुंचने और यह देखने में सक्षम होने का फायदा होगा कि वे शिक्षा प्रणाली में जो बदलाव चाहते थे, उसे लागू किया जा सके।
इसके अलावा, केंद्रीय विश्वविद्यालय मानव संसाधन और धन के मामले में बेहतर हैं। ऐसे में इन विश्वविद्यालयों को एनइपी के कार्यान्वयन का नेतृत्व कर रोल मॉडल के रूप में काम करना चाहिए।
सीयूके के कुलपति बी. सत्यनारायण और कुलसचिव बसवराज डोनू ने भी कार्यक्रम में हिस्सा लिया।