scriptमोबाइल से न ज्यादा दूरी भजी, न ज्यादा नजदीकी | Neither too far nor too close to the mobile | Patrika News

मोबाइल से न ज्यादा दूरी भजी, न ज्यादा नजदीकी

locationबैंगलोरPublished: Jan 26, 2023 07:41:49 pm

Submitted by:

Yogesh Sharma

राजस्थान पत्रिका कार्यक्रम

मोबाइल से न ज्यादा दूरी भजी, न ज्यादा नजदीकी

मोबाइल से न ज्यादा दूरी भजी, न ज्यादा नजदीकी

बेंगलूरु. राजस्थान पत्रिका बेंगलूरु के 28वें स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में मंगलवार को प्रेस्टिज वेस्टवुड अपार्टमेंट में मोबाइल और परिवार विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस अवसर पर अपार्टमेंट में रहने वाले परिवारों ने मोबाइल को उपयोगी तो बताया लेकिन इसका सीमित उपयोग करने की भी सलाह दी। इस अवसर पर राजस्थान पत्रिका बेंगलूरु के संपादकीय प्रभारी कुमार जीवेन्द्र झा ने राजस्थान पत्रिका की बेंगलूरु यात्रा की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि बच्चों की पढऩे की आदत कम हो रही है। बच्चे सभी चीजें सर्च इंजन से सर्च करने लगे हैं।
इस अवसर पर युवा बीकॉम में पढऩे वाले छात्र मानव ने कहा कि मोबाइल परिवारों को जोडक़र रखने में अहम भूमिका निभाता है। दूर दराज में रहने वाले परिजनों से वायस कॉल व वीडियो कॉल से बात कर उनके हालचाल जान सकते हैं। उन्होंने कहा कि जब परिवार के सभी सदस्य घर पर हों तो मोबाइल से दूरी बनानी चाहिए और परिवार के सभी सदस्यों को चर्चा करनी चाहिए।
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गृहणी ममता बाफणा ने कहा कि मोबाइल के सकारात्मक प्रभाव ये हैं कि कोई भी जानकारी तुरंत मिल जाती है। सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव युवा पीढ़ी पर पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि युवाओं को कुछ भी सर्च करना है तो मोबाइल का ही उपयोग करते हैं। पहले कुछ भी विचार विमर्श करने के लिए घर के बुजुर्गों व परिवार जनों के बीच बैठा जाता था। मोबाइल के चलते परिवार की दूरिया भी बढ़ गई हैं।
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गृहणी सुमन अजमेरा ने कहा कि मोबाइल का चलन इतना बढ़ गया है कि बच्चे अब बुजुर्गों से बात करने में भी गुरेज करते हैं। बच्चे मोबाइल में ही व्यस्त रहते हैं। अब बच्चे धार्मिक कार्यक्रमों में भी हिस्सा नहीं लेते हैं। मोबाइल बुजुर्गों के लिए वरदान है। बुजुर्ग व्यक्ति विदेशों या फिर अन्य शहरों में रहने वाले अपने बच्चों से वायस व वीडियो कॉल पर आसानी से बात कर लेते हैं।
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अरुणा पावेचा ने कहा कि मोबाइल अच्छा भी है और बुरा भी है। मोबाइल देश विदेश में रहने वाले अपनों से सम्पर्क सााधने का अच्छा माध्यम है। उन्होंने मोबाइल के दुष्प्रभाव के बारे में कहा कि आजकल बच्चे एक ही घर में रहने के बावजूद उठकर अपनों से नहीं मिलते और मोबाइल से ही बात करते हैं। मोबाइल के चलते आउटडोर खेल तो लगभग बंद जैसे हो गए हैं। उन्होंने बच्चों को मोबाइल से दूर रखने का सुझाव दिया।
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कुसुम परमार ने कहा कि मोबाइल के आने के बाद बच्चों का बचपन खो चुका है। अब बच्चे घर से बाहर ही नहीं निकलते हैं। स्कूल से घर में आने के बाद मोबाइल पर टूटकर पड़ते हैं। मोबाइल का उपयोग बच्चों को जरूरत के अनुसार ही करना चाहिए। मोबाइल का अतिउपयोग अच्छज्ञ नहीं कहा जा सकता है।
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शिल्पा कोठारी ने कहा कि मोबाइल आने के बाद बच्चों का अखबार पढऩे का रुझान खत्म हो गया है। बच्चे अखबार भी मोबाइल में देखते हैं। वहीं शारीरिक श्रम तो लगभग खत्म सा हो गया है। बच्चों का मानसिक विकास थम गया है। किताबें पढऩा तो बच्चे भूलते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि मोबाइल के बढ़ते चलन के लिए जिम्मेदार भी अभिभावक ही हैं।
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स्मिता सिपानी ने कहा कि मोबाइल आज जरूरत बन चुका है। बड़े बुजुर्गों के लिए मोबाइल बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि मोबाइल का अति उपयोग कहीं न कहीं नुकसानदेह भी होता है। उन्होंने कहा कि मोबाइल के अति उपयोग से डिप्रेशन, एंजाइटी, तनाव जैसे रोग लग सकते हैं। इसके चलते परिवार के साथ विचार विमर्श घटता जा रहा है।
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प्रमिला परमार ने कहा कि मोबाइल अच्छा भी है और नुकसानदेह भी है। मोबाइल ने परिवार में दूरियां बढ़ा दी हैं। चाहकर भी मोबाइल को बंद नहीं कर पाते हैं। पहले के समय में परिवार के सभी सदस्य बैठकर एक साथ खाना खाते थे। सभी एक साथ बैठकर आपस में चर्चा करते थे। मोबाइल आने के बाद सब कुछ थम सा गया है।
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शालिनी अग्रवाल ने कहा कि मोबाइल के सकारात्मक परिणाम काफी कम हैं जबकि नकारात्मक परिणाम बहुत ज्यादा हैं। मोबाइल के चलते बच्चों की नहीं परिवार के सभी सदस्यों की शारीरिक मशक्कत बंद हो गई है। वहीं परिवार के सदस्यों का आपसी मेल मिलाप ना के बराबर हो गया है। किसी से मिलना जुलना भी कम पसंद रहता है।
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सुरेश अजमेरा ने कहा कि युवा लोग मोबाइल का दुरुपयोग ज्यादा कर रहे हैं। मोबाइल के चलते बच्चे घर आने वाले रिश्तेदारों से भी नहीं मिल पाते हैं। वहीं मोबाइल व्यापारियों के लिए वरदान बनकर आया है। व्यापारियों को अब माल का आर्डर करने के लिए कोरियर या कागजों की जरूरत नहीं होती है।
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नरेन्द्र सिंघवी ने कहा कि जिन लोगों से महीनों तक मिलना जुलना नहीं हो पाता था। अब उनसे मिलने के लिए समय का इंतजार नहीं करना पड़ता है। अब मोबाइल से जहां बात की जा सकती है। वहीं वाट्सअप कॉल से एक दूसरे को रूबरू देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि कोरोना के समय जब आना जाना पूरी तरह से थम गया था। उस समय मोबाइल ही अपनो से मिलाने का एक मात्र सहारा था। उन्होंने कहा कि मोबाइल ने लोगों को झूठ बोलना भी सिखा दिया है। उन्होंने कहा कि परिवार के सदस्यों को एक नियम बनाना चाहिए कि दिन में एक घंटा मोबाइल का उपयोग नहीं करेंगे।
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बिपिन बाफना नेे कहा कि मोबाइल के फायदे भी बहुत हैं तो नुकसान भी हैं। मोबाइल ने लोगों को देश दुनिया से जोड़ दिया है। वहीं अधिक उपयोग ने दूरियां भी बढ़ा दी हैं। अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने बच्चों को माबाइल का उपयोग करने का समय निर्धारित करें। इससे बच्चा अनुशासित भी बनेगा। उन्होंने का कि मोबाइल का उपयोग व उससे दूरी बनाने के लिए परिवार को समय निर्धारित करना चाहिए।
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अश्विन सेमलानी ने कहा कि व्यापारी वर्ग के लिए मोबाइल वरदान है। पहले व्यापारी को खरीदारी के लिए दूरदराज के शहरों में जाना पड़ता था। मोबाइल आने के बाद सभी खरीदारी वाट्सअप के जरिए हो रही है। इससे जहां व्यापारी का समय व श्रम बच रहा है। वहीं आर्थिक लाभ भी हुआ है।
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प्रफुल्ल जैन ने कहा कि मोबाइल आने के बाद ऑनलाइन शॉपिंग का चलन भी बहुत बढ़ा है। इससे न चाहते हुए भी अनावश्क खरीदारी करनी पड़ती है।
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नीमा सेमलानी ने कहा कि पहले जमाने में हम किताबें व समाचार पत्र पढ़ा करते थे। मोबाइल आने के बाद आदत भी छूटती जा रही है। यहां तक की समाचार पत्र भी मोबाइल में ही देखते हैं।
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