बेंगलूरु.नई दिल्ली. साहित्यकार और तर्कवादी प्रो. एम. एम. कलबुर्गी की हत्या से जुड़े मामले की जांच केंद्र सरकार राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) से कराने के लिए उत्सुक नहीं है। शीर्ष अदालत ने इस मामले में तीन राज्यों से चार सप्ताह में शपथ पत्र दायर करने के लिए कहा है।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, ए एम खानविलकर और डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने शुक्रवार को मामले की जांच एनआईए अथवा विशेष जांच दल (एसआईटी) से कराने की मांग वाली कलबुर्गी की पत्नी उमा देवी की याचिका पर सुनवाई के दौरान कर्नाटक, महाराष्ट्र और गोवा को एक महीने में शपथ दायर करने के निर्देश दिए। इससे पहले केंद्र सरकार के वकील व अतिरिक्त सालिस्टर जनरल पिंकी आनंद ने कहा कि केंद्र कलबुर्गी हत्याकांड की जांच एनआईए से कराने के पक्ष में नहीं है क्योंकि यह उन अपराधों की श्रेणी में नहीं है जो एनआईए की जांच के दायरे में आता हो। आनंद ने अदालत से कहा कि एनआईए कानून के तहत यह एजेंसी आतंकवादी घटनाओं, उसके लिए वित्त पोषण और संबंध मामलों की जांच कर सकती है।
गौरतलब है कि हम्पी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति कलबुर्गी की हत्या 30 अगस्त 2015 को उनके धारवाड़ स्थित आवास पर सिर में गोली मारकर कर दी गई थी। इस मामले की जांच अभी राज्य के अपराध अनुसंधान विभाग (सीआईडी) की विशेष टीम कर रही है। जनवरी में उमादेवी की याचिका पर शीर्ष अदालत ने केंद्रीय एजेंसियों, केंद्र व राज्य सरकार को नोटिस जारी किया था। उमादेवी ने याचिका में कहा है कि उनके पति और महाराष्ट्र के दो तर्कवादियों- नरेंद्र दाभोलकर और गोविंद पंसारे की हत्या के तार जुड़े हुए हैं। दाभोलकर की हत्या 20 अगस्त 2013 को पुणे और पंसारे की हत्या 16 फरवरी 2015 को कोल्हापुर में हुई थी। कलबुर्गी की तरह ही इन दोनों को भी मोटरसाइकिल सवार लोगों ने दिन-दहाड़े गोली मारी थी।
साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित कलबुर्गी की हत्या के बाद बढ़ती असहिष्णुता का मामला राष्ट्रीय स्तर पर उठा था और कई साहित्यकारों ने सम्मान वापस लौटा दिया था।