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एनआइएमए ने किया एकीकृत दवा लिखने की इजाजत वापस लेने का विरोध

locationबैंगलोरPublished: Sep 22, 2020 09:41:42 pm

Submitted by:

Nikhil Kumar

– स्वास्थ्य मंत्री को ज्ञापन सौंप मांगी अनुमति- फैसले को बताया सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन

एनआइएमए ने किया एकीकृत दवा लिखने की इजाजत वापस लेने का विरोध

एनआइएमए ने किया एकीकृत दवा लिखने की इजाजत वापस लेने का विरोध

बेंगलूरु. प्रदेश स्वास्थ्य विभाग ने एक परिपत्र जारी कर भारतीय चिकित्सा पद्धति ( the Indian System of Medicine – आइएसएम) में डिग्री रखने वाले चिकित्सकों से एकीकृत दवा लिखने की इजाजत वापस ले ली है। राष्ट्रीय एकीकृत चिकित्सा संघ (The National Integrated Medical Association – एनआइएमए) ने विभाग के इस निर्णय का पुरजोर विरोध किया है। एनआइएमए ने सोमवार को निर्णय के खिलाफ प्रदर्शन किया। स्वास्थ्य मंत्री बी. श्रीरामुलु को ज्ञापन सौंप परिपत्र वापस लेने की अपील की।

दरअसल करीब तीन वर्ष पहले प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) में कार्यरत आयुष चिकित्सकों को एकीकृत दवा लिखने की सशर्त अनुमति मिली थी। एनआइएमए के अनुसार कोविड महामारी के खिलाफ जारी लड़ाई में कई आइएसएम चिकित्सक अहम भूमिका निभा रहे हैं।

एनआइएमए के पूर्व अध्यक्ष डॉ. के. सी. बल्लाल ने कहा कि प्रदेश सरकार की ओर से जारी परिपत्र सुप्रीम कोर्ट के उस इंटरलॉक्यूटरी जजमेंट का उल्लंघन है जिसमें कोर्ट ने आइएसएम चिकित्सकों को एकीकृत चिकित्सा का अभ्यास जारी रखने की अनुमति दी थी। सरकार ने एनआइएमए से चर्चा के बगैर आयुष चिकित्सकों को आवश्यक आधुनिक चिकित्सा (एकीकृत प्रणाली) के तहत पैक्टिस करने के हक से वंचित कर दिया। सरकार ने अपनी किसी भी बैठक में एनआइएमए के प्रतिनिधियों को आमंत्रित तक नहीं किया।

एनआइएमए के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. भुसणुर्मथ आर. जी. ने कहा कि कोरोना महामारी के समय आयुष चिकित्सकों को पहले की तरह पैक्टिस जारी रखने में फिलहाल कोई कानूनी बाधा नहीं है। मामला अब भी न्यायालय में है। प्रदेश सरकार को सुप्रीम कोर्ट के इंटरलॉक्यूटरी जजमेंट का स मान करना चाहिए। नहीं तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन होगा।

वेतन विसंगती दूर करने की मांग भी

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग (केंद्र और प्रदेश सरकार) के अंतर्गत कार्यरत आयुष चिकित्सकों को एलोपैथी चिकित्सकों के मुकाबले कम वेतन से गुजारा करना पड़ रहा है। एनआइएमए वेतन विसंगती दूर करने की मांग भी करता है।

यह है मामला

प्रदेश सरकार ने पांच जनवरी 2017 को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में कार्यरत आयुष चिकित्सकों को आपातकालीन स्थिति में एलोपैथी दवा लिखने की इजाजत दी थी। कर्नाटक औषधि नियंत्रक की अगुवाई वाली एक समिति से हरी झंडी मिलने के बाद यह अनुमति मिली थी। समिति के अनुसार संबंधित आयुष चिकित्सकों के लिए जिला अस्पतालों में वरिष्ठ चिकित्सकों के अंतर्गत छह माह का क्रैश कोर्स अनिवार्य था। कर्नाटक निजी चिकित्सा प्रतिष्ठान अधिनियम के तहत गठित नियामक समिति पर आयुष चिकित्सकों को प्रमाणित करने की जि मेदारी सौंपी गई थी। इन सबके बीच आयुष फेडेरेशन ऑफ इंडिया (एएफआइ) की कर्नाटक इकाई ने भी अपने खर्चे पर निजी आयुष चिकित्सकों के लिए इसी प्रकार के प्रशिक्षण की मांग की थी। एनआइएमए के अनुसार प्रदेश के करीब 25 हजार आयुष चिकित्सकों में से दो हजार चिकित्सक ही सरकारी नौकरी में हैं।

स्वास्थ्य विभाग के अनुसार पीएचसी में कार्यरत करीब दो हजार चिकित्सकों को एलौपैथी दवा लिखने की इजाजत मिली थ क्योंकि उस समय पीएचसी में पर्याप्त चिकित्सक नहीं थे। आयुष चिकित्सकों को बतौर जनरल ड्यूटी चिकित्सा अधिकारी के तौर पर बहाल किया गया था। लेकिन अब परिस्थितियां अलग हैं।

उल्लेखनीय है कि कर्नाटक चिकित्सा परिषद और ाारतीय चिकित्सा संघ पहले से ही आयुष चिकित्सकों को मिली विशेष अनुमति का विरोध करता आ रहा है। इनके अनुसार अपनी शाखा से इतर किसी अन्य पद्धति में प्रैक्टिस करने की छूट किसी को नहीं दी जा सकती है।

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