scriptNirjara of karma by doing dharma - Bhavyagunashree of Sadhvi | धर्म करने से होती कर्म की निर्जरा-साध्वी भव्यगुणाश्री | Patrika News

धर्म करने से होती कर्म की निर्जरा-साध्वी भव्यगुणाश्री

locationबैंगलोरPublished: Sep 26, 2022 07:52:56 am

Submitted by:

Yogesh Sharma

धर्मसभा का आयोजन

धर्म करने से होती कर्म की निर्जरा-साध्वी भव्यगुणाश्री
धर्म करने से होती कर्म की निर्जरा-साध्वी भव्यगुणाश्री
बेंगलूरु. चिंतामणि पाश्र्वनाथ जैन श्वेताम्बर चेरिटेबल ट्रस्ट महालक्ष्मी लेआउट जैन संघ में विराजित साध्वी भव्यगुणाश्री ने कहा कि पुण्य एवं धर्म अलग है। पुण्य देता है जबकि धर्म छीनता है। धर्म त्याग के अंदर है। धर्म करने के लिए छोडऩा पड़ता है। पुण्य करने से पुण्यबंध होते हैं जबकि धर्म करने से कर्मों की निर्जरा होती है। पुण्य सुख-सुविधाएं एवं सहारा दे सकता लेकिन संसार से पार नहीं करा सकता। संसार सागर को पार धर्म की नाव ही करा सकती है। इसके लिए पुण्य को भी छोडऩा पड़ता है। उन्होंने कहा कि आगम के अनुसार अहिंसा, संयम व तप युक्त धर्म ही श्रेयस्कर है। दिखावा आधारित धर्म विभाव का होता है। धर्म वहीं श्रेष्ठ है जहां तप व संयम का वास हो ओर अहिंसा बोलती हो। जहां दिखावा बोले वहां अहिंसा नहीं हो सकती। अहिंसा, संयम व तप की आराधना नहीं करने वाला भवसागर में डूब गया। त्याग बढऩे के साथ अहिंसा, संयम व तप भी बढ़ता है। इससे कर्मो की निर्जरा होती है। लोभी मनुष्य को स्वर्ण के पर्वत की प्राप्ति हो जाए फिर भी उसे संतोष नहीं होता है, क्योंकि इच्छाएं आकाश के समान अनंत हैं। जिस प्रकार आकाश का कोई अंत नजर नहीं आता है, उसी प्रकार इच्छाओं का भी कोई अंत नहीं आता है। साध्वी शीतलगुणाश्री ने कहा कि आज गोमाता की रक्षार्थ लंपी बीमारी से शीघ्र स्वास्थ्य लाभ प्राप्त हो इसलिए सामूहिक आयंबिल का आयोजन किया गया। नरेश बंबोरी ने बताया कि 28 सितम्बर को एवन्यू रोड स्थित राजेन्द्र जयंतसेन आराधना भवन के उद्घाटन समारोह में साध्वी वृन्द के पधारने की विनती करने के लिए राजेन्द्र जयंतसेन आराधना भवन अध्यक्ष भंवरलाल कटारिया प्रकाश हिराणी, डूंगरमल चोपड़ा, जुगराज कटारिया प्रकाश बालर, गौरव कटारिया चिंतामणि पाश्र्वनाथ जैन श्वेताम्बर चेरिटेबल ट्रस्ट पहुंचे।
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