scriptसत्संग से बड़ा कोई दरबार नहीं | No court bigger than satsang | Patrika News

सत्संग से बड़ा कोई दरबार नहीं

locationबैंगलोरPublished: Sep 27, 2018 05:58:22 pm

Submitted by:

Sanjay Kumar Kareer

यही नहीं व्यक्ति को आंतरिक व्यक्तित्व से भी परिचित होने का शुभ अवसर प्राप्त होता है

janism

सत्संग से बड़ा कोई दरबार नहीं

बेंगलूरु. वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ चिकपेट शाखा के तत्वावधान में गोडवाड़ भवन में उपाध्याय प्रवर रविंद्र मुनि ने बुधवार को धर्मसभा की शुरुआत की। रमणीक मुनि ने कहा कि सत्संग से बड़ा कोई दरबार नहीं, सत्संग से बड़ा कोई तीर्थ नहीं तथा सत्संग से बड़ी कोई पूजा नहीं होती। सत्संग के माध्यम से व्यक्ति अपने सत्य स्वरूप से परिचित होता है। यही नहीं व्यक्ति को आंतरिक व्यक्तित्व से भी परिचित होने का शुभ अवसर प्राप्त होता है।
मुनि ने कहा कि सौ काम छोड़कर सत्संग करना संतों और श्रावकों का कर्तव्य है। परमात्मा और परमात्मा की वाणी के प्रति सबसे बड़ा आदर, सत्कार और सम्मान है। उन्होंने कहा कि किसी संत के मुखारबिंद से जब व्यक्ति जिनवाणी का श्रवण करता है तो उस व्यक्ति का संत से एकात्मिक संबंध बन जाता है। जीवन शैली, दिनचर्या व ध्यान का विस्तृत उल्लेख करते हुए मुनि ने कहा कि अपने गुरुओं की विशेषताओं को उनकी चर्या के प्रति भक्ति गुणों को साकार करना चाहिए। तभी व्यक्ति की भक्ति पूर्णता को प्राप्त होती है।
ऐसे में व्यक्ति न किसी को सता सकते हैं न ही झूठ बोलते हैं। इससे पूर्व ऋषि मुनि ने गीतिका सुनाई। धर्मसभा में पारस मुनि ने मांगलिक प्रदान की। चिकपेट शाखा के महामंत्री गौतमचंद धारीवाल ने संचालन किया। श्रावक भंवरलाल फुलफगर ने विचार व्यक्त करते हुए बेंगलूरु वासियों को धर्म प्रभावना के क्षेत्र में सौभाग्यशाली बताया। आभार संरक्षक विजयराज लूणिया ने व्यक्त किया।

चुनौतियों से न घबराएं
चामराजनगर. वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ गुंडलपेट के तत्वावधान में आयोजित धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए साध्वी साक्षी ज्योति ने कहा कि अपने जीवन में किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मुसीबतों का सामना करना ही पड़ता है। इसके बिना लक्ष्य प्राप्ति न सभंव है न ही सुलभ। चुनौतियां हमारे जीवन को जीवंत बनाती हैं।
चुनौतियों को देखकर अगर हम घबरा जाते हैं और मैदान छोड़कर बाहर आ जाते हैं तो विकास का सफर पूरा नहीं होता है। साध्वी ने कहा कि यह बात याद रखनी चाहिए कि रोने से दुख कम नहीं होता है। बल्कि रो-रोकर हम अपने दुख को और बढ़ा लेते हैं। जब भी जीवन संघर्षमय लगे तब हमें उन महापुरुषों का स्मरण कर लेना चाहिए जिनके जीवन में कष्टों का अंबार लगा और वे हंसते- मुस्कुराते पार कर गए।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो