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बिना कषाय के हमारा कोई पल नहीं गुजरता-डॉ. कुमुदलता

locationबैंगलोरPublished: Nov 30, 2020 07:09:49 pm

Submitted by:

Yogesh Sharma

विदाई समारोह का आयोजन

बिना कषाय के हमारा कोई पल नहीं गुजरता-डॉ. कुमुदलता

बिना कषाय के हमारा कोई पल नहीं गुजरता-डॉ. कुमुदलता

बेंगलूरु. श्रीरंगपट्टण के दिवाकर गुरु मिश्री राज दरबार में साध्वी डॉ. कुमुदलता आदि ठाणा का विदाई समारोह सोमवार को गुरुभक्त वर्षावास समिति की ओर से आयोजित किया गया। इस अवसर पर साध्वी डॉ. कुमुदलता ने कहा कि वैसे तो हम सभी की कोशिश यही रहती है कि हमारी वजह से, हमारी किसी भी बात से, किसी क्रिया या कार्य से कभी किसी को कष्ट ना पहुचे। परंतु मानव-सहज स्वभाव है कि कभी-कभी हमारी वजह से किसी ना किसी को कुछ खेद हो ही जाता है।
इस वर्ष गुरुदेव और जिनवाणी (गुरुवाणी) का सान्निध्य का प्राप्त होना दुर्लभ रहा, परंतु इसका अर्थ यह नहीं कि हम इनसे वंचित रहे। इस आपदा काल में आप सभी स्वस्थ रहें, यथाशक्तिधर्म-ध्यान और तपस्या करें। उन्होंने कहा कि हम प्रतिक्षण कषाय में जीते हैं। बिना कषाय के हमारा कोई पल नहीं गुजरता। कषाय चाहे प्रकट हो, चाहे अप्रकट, पर गति तो उसकी जारी है। प्रकट भले हम कम कर पाते हों, पर मन में तो प्रतिक्षण जारी है। उसे वैसी परिस्थितियांं प्राप्त होती रहती है। वह परिस्थितियों के अधीन होकर अपना अस्तित्व विस्मृत करता जाता है। सच तो यह है कि कषाय कर वही पाता है, जिसे अपने अस्तित्व का स्मरण नहीं होता। अस्तित्व को स्मरण में रखने वाला कषाय नहीं कर पाता। क्योंकि कषाय की ओर देखने के लिये उसके पास न समय होता है, न वैसा मानस। बड़ी अचरज की बात है कि मैं अपने ही अस्तित्व के पास रहता हूं। अपने ही अस्तित्व के इर्दगिर्द घूमता हूं। अपने अस्तित्व के अभाव में एक पल भी नहीं होता। फिर भी मैं जिन्दगी भर अस्तित्व खोजता रहता हूं, और एक ही जीवन क्या, अनन्त जीवन उसकी खोज में लगाता हूं… तो भी अपने अस्तित्व का पता नहीं लगा पाता। क्योंकि मैं अस्तित्व के स्वरूप से परिचित नहीं हुआ हूं। अपने अस्तित्व के स्वरूप से परिचित होकर यदि खोज करता तो खोज करने जाना नहीं पड़ता। खोजने की इच्छा होते ही मिल जाता है। खोज के लिए एक कदम बढ़ाते ही रोशनी उतर आती। फिर कभी अलग होने की बात नहीं होती, फिर कुछ नहीं होता पास तो भी सब कुछ होता पास, फिर किसे फुरसत होती कषाय करने की। फिर किसे फुरसत होती परिस्थितियों की विवेचना करने की। अस्तित्व अन्तर में उतर आने के बाद बाहर देखना मजबूरी होती है। बाहर जीना मजबूरी होती है। फिर तो वह केवल और केवल अपने ही साथ जीता है। किसी और के साथ जीने पर भी उसके साथ नहीं होता। वह प्रतिक्षण केवल और केवल अपने ही साथ जीता है। अपने में जीता है। अपने अमृत में जीता है। अपनी शाश्वतता में जीता है।समिति के मदनलाल दरला ने बताया कि विदाई समारोह के अवसर पर भारी संख्या में श्रावक व श्राविका उपस्थित थे।
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